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    दिल्ली

    ED अधिकारी बनकर वसूली करने वाले गिरोह का पर्दाफाश, दिल्ली पुलिस ने 4 शातिरों को दबोचा

    adminBy adminAugust 29, 2021No Comments4 Mins Read
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    दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह का पर्दाफाश करते हुए चार लोगों को गिरफ्तार किया है. पकड़े गए सभी आरोपी खुद को ईडी (ED) का अधिकारी बताते थे और उन लोगों की पहचान करते थे जो जांच एजेंसी की तफ्तीश के नाम पर लाखों रुपये देने के लिए तैयार हो जाए. क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस फर्जीवाड़े गिरोह (Fraud Gang) के मुख्य सरगना का नाम डॉक्टर संतोष राय है. यह अपने आप को कभी फिल्म डायरेक्टर बताता था, तो कभी एक्टर बताता था. तफ्तीश के दौरान क्राइम ब्रांच को यह जानकारी मिली थी कि गोडसे नामक फिल्म में आरोपी संतोष राय मुख्य अभिनेता और फिल्म निर्माता/निर्देशक के तौर पर काम कर चुका है. साथ ही यह भी पता चला कि वो अवैध उगाही के पैसों को फिल्म बनाने में निवेश करता था.

    अधिकारी ने बताया कि हमें प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों द्वारा यह जानकारी मिली थी कि कुछ शातिर बदमाश ईडी के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रहे हैं. इसके बाद ईडी और दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जॉइंट ऑपरेशन कर इन अपराधियों को धर दबोचा.

    क्राइम ब्रांच ने जिन शातिर आरोपियों को गिरफ्तार किया है उनके नाम हैं

    – संतोष राय उर्फ राजीव सिंह, मुख्य साजिशकर्ता
    – संजय, आरोपी अफजल उर्फ छोटे का दोस्त
    – कुलदीप, आरोपी अफजल उर्फ छोटे का दोस्त
    – भूपेंद्र, पटियाला हाउस कोर्ट में एक वकील का मुंशी

    मुख्य आरोपी संतोष राय फिल्मों में बतौर अभिनेता कर चुका है काम

    क्राइम ब्रांच के मुताबिक आरोपी संतोष राय अपने आप को ईडी का अधिकारी राजीव सिंह बताता था. वो लोगों से कहता था कि वो ईडी मुख्यालय में अधिकारी है. वो अपने मोबाइल फोन से कुछ विशेष मोबाइल ऐप द्वारा कई कारोबारियों को फोन कर धमकी देता था और उसके नाम से फर्जी नोटिस भेजता था. फिर इसके बाद पुलिस अधिकारी बनकर वो मोबाइल फोन के माध्यम से उसे सलाह देता था कि वो अपने इलाके को छोड़कर ना जाएं, क्योंकि ईडी के अधिकारी जल्द ही उनसे पूछताछ करने के लिए आने वाले हैं. इस साजिश में उसके बाद खेल शुरू होता है भूपेंद्र नाम के आरोपी का.
    क्राइम ब्रांच के मुताबिक आरोपी संतोष राय अपने आप को ईडी का अधिकारी राजीव सिंह बताता था. वो लोगों से कहता था कि वो ईडी मुख्यालय में अधिकारी है. वो अपने मोबाइल फोन से कुछ विशेष मोबाइल ऐप द्वारा कई कारोबारियों को फोन कर धमकी देता था और उसके नाम से फर्जी नोटिस भेजता था. फिर इसके बाद पुलिस अधिकारी बनकर वो मोबाइल फोन के माध्यम से उसे सलाह देता था कि वो अपने इलाके को छोड़कर ना जाएं, क्योंकि ईडी के अधिकारी जल्द ही उनसे पूछताछ करने के लिए आने वाले हैं. इस साजिश में उसके बाद खेल शुरू होता है भूपेंद्र नाम के आरोपी का.

    शातिर भूपेंद्र दिल्ली स्थित पटियाला हाउस कोर्ट में एक वकील के साथ मुंशी का काम करता है. वो कारोबारियों को डरा कर अपने पटियाला हाउस कोर्ट के चेंबर के अंदर बुलाता था और उन्हें डरा-धमका कर के उसके काम का सेटलमेंट करवाने का भरोसा देता था. हैरानी की बात है कि जिस वकील के साथ वो काम करता था, उन्हें इस मामले की जानकारी तक नहीं थी. लेकिन, भूपेंद्र फर्जीवाड़े को अंजाम देकर अपने आप को बहुत बड़ा वकील बताता था.

    क्राइम ब्रांच के अधिकारी के मुताबिक संतोष राय उन तमाम लोगों को कमीशन देता था जो कारोबारियों को फंसाने का काम करते थे. इसके लिए लगभग 25 प्रतिशत का कमीशन फिक्स था.
    ईडी के इनपुट पर दिल्ली पुलिस ने की कार्रवाई
    ईडी मुख्यालय में कार्यरत एक अधिकारी के मुताबिक जांच एजेंसी इस गैंग के पीछे पिछले 15 दिनों से लगी हुईं थी. लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली पुलिस को यह इनपुट दिया गया तब पुलिस मुख्यालय द्वारा इस विशेष ऑपरेशन की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच को सौंपा गया. इसके लिए क्राइम ब्रांच के एडिश्नल कमिश्नर सिबेश सिंह, जॉइंट कमिश्नर आलोक कुमार, डीसीपी मोनिका भारद्वाज के नेतृत्व में इंस्पेक्टर विवेकानंद झा की टीम को तफ्तीश का जिम्मा सौंपा गया. उसके बाद विवेकानंद झा की टीम में सब-इंस्पेक्टर लोकेंद्र, मिंटू, संजय गुप्ता सहित पूरी टीम ने मुख्य साजिशकर्ता को पैसों की लेन-देन करते हुए पार्लियामेंट स्ट्रीट थाना के पास रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया.

    मोबाइल एप के माध्यम से कॉलर खुद को बताता था ED का अधिकारी

    एक मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से कॉलर संतोष राय का नाम दूसरे के फोन में राजीव सिंह दिखाता था. साथ ही उसके नाम के साथ ED मुख्यालय लिखा हुआ दिखता था. इसके साथ ही कुछ मोबाइल नंबर से दिल्ली पुलिस अधिकारी के नाम और पुलिस मुख्यालय के नाम से कॉलर को दिखता था, जिस आधार पर पीड़ित कारोबारी को लगता था कि यह असली जांच अधिकारी है. इसका फायदा उठाकर इस पूरे फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जा रहा था.

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