देश में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की संभावना तलाशने के लिए समिति की जिम्मेदारी संभालने से पांच साल पहले देश के तत्कालीन राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद ने एक साथ चुनाव कराने पर सभी दलों के बीच बहस और आम सहमति की जोरदार वकालत की थी. कोविंद ने 29 जनवरी, 2018 को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि देश में शासन की स्थिति से अवगत नागरिक यहां किसी न किसी हिस्से में बार-बार होने वाले चुनावों को लेकर चिंतित हैं, जो अर्थव्यवस्था और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.
उन्होंने कहा था, ‘‘बार-बार चुनाव होने से न केवल मानव संसाधन पर भारी बोझ पड़ता है, बल्कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास प्रक्रिया भी बाधित होती है. इसलिए एक साथ चुनाव कराने के विषय पर सतत बहस की जरूरत है और सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की आवश्यकता है.’’ 17वीं लोकसभा के चुनाव के बाद संसद के पहले संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कोविंद ने ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ की जोरदार वकालत की थी.
‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ को विकास के लिए बताया जरूरी
उन्होंने कहा था, ‘‘पिछले कुछ दशकों के दौरान, देश के किसी न किसी हिस्से में बार-बार चुनाव होने के कारण, विकास कार्यक्रमों की गति और निरंतरता प्रभावित हुई है.’’ कोविंद ने कहा कि देश के लोगों ने राज्य और राष्ट्रीय दोनों मुद्दों पर स्पष्ट फैसला देकर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया है और ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ समय की मांग है. उनके अनुसार इससे त्वरित विकास होगा, जिससे हमारे देशवासियों को लाभ होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की व्यवस्था होने से सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी विचारधारा के अनुरूप विकास और जनकल्याण के लिए अपनी ऊर्जा का बेहतर उपयोग कर सकेंगे. इसलिए, मैं सभी सांसदों से आग्रह करता हूं कि वे ‘एक राष्ट्र, एक साथ चुनाव’ के विकासोन्मुखी प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करें.’’
सांसदों से करते रहे ‘राष्ट्र प्रथम’ की अपील
वर्ष 2017 से 2022 तक देश के 14वें राष्ट्रपति रहे कोविंद (77) ने 23 जुलाई, 2022 को संसद के केंद्रीय कक्ष में उनके लिए आयोजित विदाई रात्रिभोज में सभी दलों से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना के साथ लोगों के कल्याण के लिए जरूरी चीजों पर विचार-विमर्श करने को कहा था. पद छोड़ने के एक साल से अधिक समय बाद, पूर्व राष्ट्रपति अब ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा गठित समिति का नेतृत्व करेंगे.
राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद भी सक्रिय
भारत के राष्ट्रपति के रूप में पद छोड़ने के बाद भी, कोविंद का एक सक्रिय सार्वजनिक जीवन रहा है. वह लगातार व्याख्यानमालाओं और विभिन्न समारोहों में भाग ले रहे हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की थी. भागवत पूर्व राष्ट्रपति के आवास पर उनसे मिलने पहुंचे थे. मुलाकात के बाद कोविंद ने कहा था कि विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी अच्छी बातचीत हुई. भागवत से मुलाकात के बाद कोविंद ने कहा था, ‘‘हमारे देश की प्रगति और मूल्यों के बारे में उनकी अंतर्दृष्टि वास्तव में प्रेरणादायक है.’’
साधारण परिवार से रहे हैं रामनाथ कोविंद
जमीनी स्तर के नेता से देश के प्रथम नागरिक बनने तक की कोविंद की यात्रा बहुत ही प्रेरणास्पद रही है. अपने भाषणों में भी वह अक्सर अपनी साधारण पृष्ठभूमि का उल्लेख करते रहे हैं. अक्सर यह चर्चा भी होती है कि कैसे वह एक छोटे से गांव में कच्चे घर में पले बढ़े और राष्ट्रपति पद तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया. उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के परौंख गांव में जन्मे कोविंद ने 1971 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में वकील के रूप में पंजीकरण कराया और 1977 से 1979 तक दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार के वकील के रूप में कार्य किया.
बहुत खास है कोविंद का वकील से राष्ट्रपति तक का सफर
वर्ष 1978 में, वह सुप्रीम के वकील बनेत्र. कोविंद 1980 से 1993 तक शीर्ष अदालत में केंद्र सरकार के स्थायी वकील थे. अप्रैल 1994 में वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. बतौर राज्यसभा सदस्य उन्होंने मार्च 2006 तक छह-छह साल के लगातार दो कार्यकाल पूरे किए. कोविंद को आठ अगस्त 2015 को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. के आर नारायणन के बाद शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंचने वाले कोविंद देश के दूसरे दलित नेता थे. नारायणन 25 जुलाई, 1997 से 25 जुलाई, 2002 तक देश के पहले दलित राष्ट्रपति रहे.