केंद्र सरकार महिला आरक्षण बिल ला सकती है. संसद के विशेष सत्र में बुधवार को बिल पेश हो सकता है. सूत्रों के हवाले से यह बड़ी खबर सामने आ रही है. करीब 27 साल से लंबित महिला आरक्षण विधेयक अटका पड़ा है और अब सरकार इस पर यह बड़ा कदम उठाने वाली है.
बता दें कि संसद के पांच दिवसीय सत्र से एक दिन पहले रविवार को सरकार द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के दौरान विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कई दलों ने सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की जोरदार हिमायत की, जिस पर सरकार ने कहा कि वह उपयुक्त समय पर निर्णय लेगी. बैठक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसी निर्वाचित संस्थाओं में महिला आरक्षण की जोरदार वकालत की गई. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कांग्रेस एवं उसके सहयोगियों की इस मांग में उनका साथ दिया.
साथ ही, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और बीजू जनता दल (बीजद) ने सरकार से आग्रह किया कि संसद की कार्यवाही नई इमारत में स्थानांतरित होने के महत्वपूर्ण अवसर पर महिला आरक्षण विधेयक पारित कर इतिहास रचा जाए.
तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी में महिला सांसदों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या का उल्लेख किया और उसने महिलाओं के आरक्षण के लिए विधेयक की आवश्यकता का समर्थन किया.
सर्वदलीय बैठक के बाद बीजद नेता पिनाकी मिश्रा ने कहा कि नए संसद भवन से एक नए युग की शुरुआत होनी चाहिए और महिला आरक्षण विधेयक पारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस विचार के बड़े समर्थक हैं. राकांपा नेता पटेल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह विधेयक आम सहमति से पारित हो जायेगा.
हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और समाजवादी पार्टी जैसी कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने महिलाओं के लिए ऐसे किसी भी आरक्षण में पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति की महिलाओं का कोटा निर्धारित करने का मुद्दा उठाया.
महिला आरक्षण से संबंधित मांगों के बारे में पूछे जाने पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा कि सर्वदलीय बैठकों के दौरान पार्टियां अलग-अलग मांगें करती हैं. उन्होंने कहा कि उपयुक्त समय पर इस संबंध में फैसला लिया जाएगा.
इसी तरह का एक विधेयक 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान था. हालांकि, यह संसद के निचले सदन में पारित नहीं हो सका और लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह स्वत: रद्द हो गया.