अब किसी की जेब में चवन्नी भी नहीं मिलती. डिजिटल क्या हुए, जेब पर मानो डाका-सा पड़ गया है. 5 रुपये की टॉफी भी खरीदनी होती हैं तो फौरन जेब से मोबाइल निकाला, क्यूओर कोड स्कैन किया और टन्न से कर दिया पेमेंट. रोजाना के 5, 10, 50,100 रुपये के ना जाने कितने भुगतान में हम ऑनलान करते हैं. कोई पेटीएम का इस्तेमाल कर रहा है तो कोई किसी और ऐप का.
डिजिटल (यूपीआई) लेनदेन का चलन बढ़ने से भुगतान करने के तमाम तरीके बदल गए हैं. बाजार या मॉल की पार्किंग का भुगतान करना हो, टोल देना हो, किराने का सामान खरीदना हो, बच्चों की फीस जमा करनी हो, दूधवाले का भुगतान करना है…सभी जगह बस मोबाइल से भुगतान. हालांकि, मोबाइल से पेमेंट करने से हमें बहुत आसानी और सुविधा हो गई है. अब टाइम और जगह की चिंता किए बिना कभी भी, कहीं भी और किसी को भी झट से भुगतान कर देते हैं या भुगतान ले लेते हैं. और इसके लिए हम सीधे अपने बैंक अकाउंट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ज्यादा सुविधा भी ज्यादा जोखिम का सबब बन जाती है.
जैसे-जैसे डिजिटल लेनदेन बढ़ा है, उसी हिसाब से हैकर्स की गतिविधियां बढ़ रही हैं. जेब में रखे मोबाइल से ही लोगों के बैंक अकाउंट खाली हो रहे हैं. इसलिए अगर आप ही दिनभर के खर्चों के लिए सीधे अपने मुख्य बैंक अकाउंट (जिसमें आपका वेतन और निवेश संबंधि हिसाब जुड़ा हो) से पेमेंट करते हैं, जरा संभल जाएं, क्योंकि आप भी हैकर्स के निशाने पर हो सकते हैं. अच्छा तो ये रहेगा कि रोजाना के भुगतान के लिए एक अलग खाते का इस्तेमाल करें. यहां हम चर्चा कर रहे हैं कि दैनिक पेमेंट के लिए अलग खाता क्यों जरूरी है.
धोखाधड़ी से सुरक्षा
अगर आप रोजमर्रा के छुटमुट खर्चों का भुगतान उसी बैंक खाते से कर रहे हैं, जिसमें आपकी सेलरी आती है तो आपको सावधानी बरतने की जरूरत है. क्योंकि अपने मुख्य बैंक खाते को जगह-जगह क्यूआर कोड से स्कैन करने पर आप हैकर्स के निशाने पर आ सकते हैं. और अगर कभी हैकर्स का दाव लग गया तो आपको बड़ी चोट लग सकती है. इसलिए बेहतर होगा कि नियमित ऑनलाइन भुगतान के लिए एक अलग से बैंक खाता खोलकर उसका इस्तेमाल करें. इस खाते में अपनी सेलरी या बचत का एक छोटा-सा हिस्सा डाल कर रखें. क्योंकि अगर आप किसी हैकिंग का शिकार होते भी हैं तो कम नुकसान होगा.