भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि खाद्य कीमतों की तरफ से बार-बार झटके लगने और भू-राजनीतिक मोर्चे पर नए तनाव पैदा होने से मुद्रास्फीति से निपटने की राह में चुनौतियां पैदा होती हैं. दास ने यहां ‘59वें सीसेन गवर्नर्स सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए कहा कि कहा, ‘‘हम अवस्फीति (मुद्रास्फीति में गिरावट) के अंतिम चरण से निपटने के लिए सतर्क हैं क्योंकि यह अक्सर सफर का सबसे मुश्किल दौर होता है. हमारा दृढ़ मत है कि स्थिर और निम्न मुद्रास्फीति स्थायी आर्थिक वृद्धि के लिए जरूरी आधार देगी.’’
उन्होंने कहा कि भारत कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर चुका है और सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है. उन्होंने कहा, ‘‘विवेकपूर्ण मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों ने मु्श्किल परिस्थितियों से निपटने में भारत की सफलता का मार्ग प्रशस्त किया है. आरबीआई का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी. यह लगातार चौथा साल होगा जब इसकी वृद्धि दर सात प्रतिशत या उससे अधिक रहेगी.’’
महंगाई दर पर नियंत्रण की चुनौती बरकरार रहेगी
इसके साथ ही दास ने कहा कि मुद्रास्फीति वर्ष 2022 की गर्मियों के उच्चतम स्तर से अब नीचे आ चुकी है. द्विमासिक मौद्रिक नीति के लिए अहम खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी महीने में 5.1 प्रतिशत रही है. उन्होंने कहा कि बार-बार आने वाले खाद्य कीमतों के झटके और भू-राजनीतिक मोर्चे पर नए सिरे से तनाव बिंदुओं के उभरने से मुद्रास्फीति में नरमी की प्रक्रिया के लिए चुनौतियां पैदा होती हैं. आरबीआई गवर्नर ने कहा कि लगातार कई प्रतिकूल झटकों के बीच भारत की समन्वित नीतिगत प्रतिक्रिया भविष्य के लिए एक अच्छा मॉडल हो सकती है.
उन्होंने कहा, ‘‘जहां मौद्रिक नीति ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और मांग से उपजे दबाव कम करने का काम किया है, वहीं आपूर्ति पक्ष से जुड़े सरकारी हस्तक्षेप ने इससे संबंधी दबाव हटाए और लागत-जनित मुद्रास्फीति को कम करने में योगदान दिया. भारत की कामयाबी के मूल में प्रभावी राजकोषीय-मौद्रिक समन्वय था.’’
उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था एक चौराहे पर खड़ी है और चुनौतियां भी तमाम हैं. लेकिन, इसी के साथ नए अवसर भी दस्तक दे रहे हैं. दास ने कहा, ‘‘हम यहां से जो रास्ता अपनाएंगे, वह आने वाले समय में हमारा भाग्य तय करेगा, हमें ऐसी नीतियों की जरूरत है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की नई वास्तविकताओं के अनुरूप हों. अनिश्चित दुनिया में, केंद्रीय बैंकों को अपने उद्देश्यों को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए सक्रिय होने की आवश्यकता है.’’
दक्षिण-पूर्व एशियाई केंद्रीय बैंक (सीसेन) मंच के मौजूदा अध्यक्ष आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि इस क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग में तुलनात्मक लाभ और संसाधन इंतजाम के सिद्धांतों पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि हर कोई लाभान्वित हो.