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कौन हैं सीपीआई नेता एनी राजा, जो वायनाड में राहुल गांधी को दे रहीं चुनौती, कम उम्र में ही थाम लिया था लाल झंडा

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आजकल ना केवल मौसम में बल्कि पूरे देश के माहौल में लोकसभा चुनाव की तपिश महसूस की जा रही है. 19 अप्रैल को पहले चरण में 102 सीटों के लिए मतदान हो चुका है. दूसरे चरण में 26 अप्रैल को केरल के सभी 20 संसदीय क्षेत्रों में मतदान होगा. केरल में अगर किसी सीट को हाई प्रोफाइल कहा जा सकता है तो वो है वायनाड. यहां से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उम्मीदवार हैं. राहुल गांधी के खिलाफ सीपीआई की नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन की महासचिव और पार्टी के महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा मुकाबले में हैं. राहुल गांधी ने 2019 में वायनाड सीट से चार लाख वोटों के अंतर से प्रचंड जीत दर्ज की थी. देखने वाली बात यह है कि एनी राजा, राहुल गांधी को कितनी कड़ी टक्कर दे पाती हैं?

लड़ती रही हैं महिलाओं की लड़ाई
द न्यूज मिनट वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक एनी राजा भारत में वामपंथी राजनीति के सबसे अधिक पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक हैं. वह लगातार महिलाओं के लिए लड़ाई में अगुआई करती रही हैं. जहां अधिकारों की मांग को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता था, ऐसे मामलों में देश में वह लगभग हर जगह विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुई हैं. सीपीआई में एनी की साथी और तिरुवनंतपुरम जिला पंचायत की सदस्य गीता नज़ीर कहती हैं, “अब उन महिलाओं की एनी के लिए लड़ने की बारी है. वह वायनाड में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं. वो जिन महिलाओं के लिए आवाज उठाती रही हैं, वे उनके साथ हैं. एनी महिलाओं की समस्याओं के लिए ना केवल लड़ती रही हैं, बल्कि देश भर में हजारों किलोमीटर की यात्रा करती रही हैं.”

पहली बार लड़ रही हैं चुनाव
एक नेता से अधिक एक कार्यकर्ता, 60 वर्षीय एनी मतदान की उम्र तक पहुंचने से पहले ही सीपीआई का हिस्सा बन गई थीं, और इस साल यह पहला मौका है कि वह चुनाव लड़ रही हैं. वायनाड, जहां से एनी चुनाव लड़ रही हैं, पूरे भारत के लिए विशेष दिलचस्पी का निर्वाचन क्षेत्र है. क्योंकि वह भारत में कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नामों में से एक का सामना कर रही हैं. उनकी दोनों पार्टियां I.N.D.I.A. नामक विपक्षी गठबंधन में सहयोगी हैं, जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के लिए कई ‘धर्मनिरपेक्ष’ राजनीतिक ताकतों द्वारा बनाया गया है. फिर भी केरल में, यह पूरी तरह से एक अलग कहानी है. राज्य में चुनावी लड़ाई हमेशा वामपंथियों और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच रही है.