Home देश आईआईटी क्यों बंद कर रहा है ब्रांच चेंज करने का ऑप्शन, क्या...

आईआईटी क्यों बंद कर रहा है ब्रांच चेंज करने का ऑप्शन, क्या है इसकी वजह

0

आईआईटी से पढ़ाई करने का सपना देख रहे युवाओं के लिए एक जरूरी खबर है. देश के कुछ आईआईटी ने पहले साल के बाद छात्रों को दी जाने वाली ब्रांच चेंज करने की सुविधा को बंद करने का फैसला किया है. ब्रांच चेंज करने का विकल्प भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) द्वारा पहले साल के छात्रों को पहले साल के बाद अपनी कोर ब्रांच बदलने का अवसर दिया जाता है. हालांकि, 23 आईआईटी में से नौ ने अब यह विकल्प बंद कर दिया है.

आईआईटी का दावा है कि इस विकल्प को बंद करने के पीछे का कारण पहले से ही तनावग्रस्त छात्रों पर दबाव डालना है. इंडियनएक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है कि लगभग 50 प्रतिशत नए छात्र ब्रांच चेंज करने का विकल्प चुनना चाहते हैं, लेकिन केवल 10 प्रतिशत छात्र ही इस ऑप्शन का इस्तेमाल कर पाते हैं. आमतौर पर एक छात्र पहले साल के अंत में ब्रांच चेंज के लिए तभी आवेदन कर सकता है, जब उसका सीजीपीए 7.50 (सामान्य श्रेणी) से अधिक हो.

उम्मीदवार को पहले शैक्षणिक सेशन के अंत में 32 से अधिक क्रेडिट लाने की आवश्यकता होती है. साथ ही ब्रांच चेंज की अनुमति पहले साल के अंत में सीजीपीए द्वारा निर्धारित योग्यता के क्रम में सख्ती से दी जाती है. दुर्भाग्य से, आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ छात्र आमतौर पर अपने पहले वर्ष के अधिकांश दिन अपनी किताबों के साथ अपने कमरों या पुस्तकालयों में बिताते हैं.

ब्रांच चेंज करने का ऑप्शन देने वाले IIT ब्रांच चेंज नहीं करने का ऑप्शन देने वाले IIT
आईआईटी कानपुर आईआईटी जम्मू
आईआईटी गोवा आईआईटी हैदराबाद
आईआईटी दिल्ली आईआईटी बॉम्बे
आईआईटी रुड़की आईआईटी मद्रास
आईआईटी गांधीनगर आईआईटी खड़गपुर
आईआईटी इंदौर आईआईटी धनबाद
आईआईटी रोपड़ आईआईटी धारवाड़
आईआईटी गुवाहाटी आईआईटी मंडी
आईआईटी पटना आईआईटी भुवनेश्वर
आईआईटी पलक्कड़

आईआईटी तिरुपति

आईआईटी भिलाई

आईआईटी रुड़की

आईआईटी जोधपुर

सीटों की सीमित संख्या और हाई सीजीपीए की आवश्यकता छात्रों के लिए कंपीटेटिव को कठिन बनाती है, जिसके परिणामस्वरूप छात्र फ्रेशर्स एक्टिविटीज में भाग लेने, क्लब/ग्रुपों के मेंबर बनने, पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने, कॉलेज फेस्ट में भाग लेने, नए-नए दोस्तों के साथ समय बिताने आदि से चूक जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इसका छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर तब जब अधिकांश इंजीनियरिंग छात्र अपनी (कम से कम) स्कूली शिक्षा के अंतिम दो साल पहले से ही जेईई मेन और जेईई एडवांस को क्रैक करने की चिंता में बिताते हैं.

इसके अतिरिक्त, इन सभी प्रयासों, तैयारियों और त्याग के बाद भी यदि छात्रों को अपनी पसंद की ब्रांच नहीं मिल पाती है, तो वे अक्सर निराश महसूस करते हैं और अपनी बीटेक डिग्री के शेष वर्षों तक असंतुष्ट रहते हैं.