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दुनिया के किन देशों में सस्ती है MBBS की पढ़ाई, डिग्री के बाद भारत में होती है कौन सी परीक्षा

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कई बार पैसों के अभाव में बहुत से लोग डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं कर पाते, खासतौर से वे लोग जिनका सपना विदेश जाकर एमबीबीएस करने का होता है. भारत में एमबीबीएस की सीटें कम होने और नीट परीक्षा में कम स्कोर होने के कारण उन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिल पाते, जिससे उन्हें प्राइवेट कॉलेजों की ओर रुख करना पड़ता है, लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की फीस इतनी अधिक होती है कि कई लोग एडमिशन नहीं ले पाते. ऐसे में हम आपको कुछ ऐसे देशों के बारे में बताएंगे, जहां से आप कम खर्च में एमबीबीएस की पढ़ाई कर सकते हैं. आइए जानते हैं, मेडिकल कोर्सेज के लिए कौन-कौन से देश अच्छे हैं और वहां एमबीबीएस करने का खर्च कितना आता है?

जर्मनी: सबसे पहले बात करते हैं जर्मनी की. भारत से विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले आंकड़ों पर नजर डालें, तो अधिकतर छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए जर्मनी जाते हैं. यहां पर कम फीस में मेडिकल की पढ़ाई की जा सकती है. यदि आपने नीट की परीक्षा दी है, तो इस स्कोर के आधार पर आपको यहां की यूनिवर्सिटीज में एडमिशन मिल जाएगा. यहां 4 से 6 लाख रुपये सालाना में एमबीबीएस किया जा सकता है. जर्मनी की हीडलबर्ग यूनिवर्सिटी और हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी को मेडिकल की पढ़ाई के लिए अच्छा माना जाता है, जहां से कम खर्च में एमबीबीएस किया जा सकता है.

रूस: हर साल भारतीय छात्र बड़ी संख्या में मेडिकल की पढ़ाई के लिए रूस भी जाते हैं. यहां भी एडमिशन के लिए नीट स्कोर जरूरी है. यहां एमबीबीएस का कोर्स 6 साल का होता है. कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुर्स्क स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी छात्रों की पसंदीदा यूनिवर्सिटीज में से एक है. इसी तरह, बशखिर स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में भी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र एडमिशन लेते हैं. रूस से एमबीबीएस की पढ़ाई का खर्च लगभग 29 से 30 लाख रुपये आता है.

फिलीपींस: फिलीपींस में भी मेडिकल की पढ़ाई काफी सस्ती मानी जाती है, और यहां भी भारतीय छात्र एमबीबीएस करने के लिए जाते हैं. 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, उस साल लगभग 15,000 से अधिक भारतीय छात्र एमबीबीएस के लिए फिलीपींस गए थे. फिलीपींस में एमबीबीएस का कोर्स 5.5 से 6.5 साल में पूरा होता है. यहां के मेडिकल कॉलेजों में फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) के जरिए एडमिशन मिलता है. फिलीपींस में एमबीबीएस में एडमिशन के लिए उम्मीदवार की आयु कम से कम 17 साल और अधिकतम 25 साल होनी चाहिए. यहां एमबीबीएस की पढ़ाई का खर्च 20 से 22 लाख रुपये आता है.
बेलारूस: बेलारूस भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए भारतीय छात्रों के बीच लोकप्रिय है. यह देश सस्ती शिक्षा प्रदान करने वाले देशों में गिना जाता है. यहां की एमबीबीएस डिग्री को WHO और NMC द्वारा मान्यता प्राप्त है. यहां से 25 से 30 लाख रुपये में एमबीबीएस किया जा सकता है, जबकि रहने का खर्च मासिक 15 से 20 हजार रुपये आता है.

कजाकिस्तान: कजाकिस्तान में भी मेडिकल की पढ़ाई सस्ती मानी जाती है. यहां MBBS की पढ़ाई 5 साल में पूरी होती है. इस देश में एमबीबीएस करने के लिए 12वीं कक्षा में कम से कम 50% अंक होने चाहिए. यहां से 25 लाख रुपये तक में मेडिकल की पढ़ाई की जा सकती है. यहां की मेडिकल यूनिवर्सिटीज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के बाद छात्रों को फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) देना होता है.

चीन: चीन में एमबीबीएस का कोर्स 6 साल का होता है, जिसमें 5 साल की पढ़ाई और 1 साल की इंटर्नशिप शामिल होती है. बड़ी संख्या में भारतीय छात्र चीन में पढ़ाई के लिए जाते हैं, जिसका एक प्रमुख कारण यह है कि चीन विदेशी छात्रों को स्कॉलरशिप भी प्रदान करता है. यहां एमबीबीएस करने के लिए न्यूनतम आयु 17 साल होनी चाहिए. चीन में एमबीबीएस की पढ़ाई का खर्च 29 से 30 लाख रुपये आता है.

विदेश से एमबीबीएस करने के बाद क्‍या होगा?
विदेश से एमबीबीएस करके लौटने वाले छात्रों को भारत में डॉक्‍टरी की प्रैक्‍टिस के लिए फ़ॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (FMGE) परीक्षा देनी होती है. इसमें पास होने वालों को ही यहां डॉक्‍टरी करने की इजाजत मिलती है. इस परीक्षा को मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया स्क्रीनिंग टेस्ट भी कहते हैं. एफएमजीई परीक्षा का आयोजन नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्ज़ामिनेशन इन मेडिकल सर्विसेज़ (NBE) की ओर से किया जाता है. यह परीक्षा साल में दो बार, जून और दिसंबर में आयोजित की जाती है.

भारत में इंटर्नशिप अनिवार्य
विदेश से डिग्री लेने के बाद छात्रों को फ़ॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट परीक्षा (FMGE)तो पास करनी ही होगी. भारत में एक साल की इंटर्नशिप भी करनी होगी. हाल ही में दिल्‍ली हाईकोर्ट ने इस संबंध में एक नोटिस भी जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि बाहर से मेडिकल कोर्स करके भारत आने वाले छात्रों को अपने देश में भी कम से कम 12 महीने की इंटर्नशिप करना होगा. यह आदेश यूक्रेन से लौटे उन छात्रों की याचिका पर दिया गया था, जिसमें भारतीय छात्रों ने देश में पढ़ाई जारी रखने की मांग की थी. इसके लिए दिल्‍ली हाईकोर्ट में अर्जी लगाई गई थी.