महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए महायुति गठबंधन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. हालांकि अभी तक मुख्यमंत्री पद को लेकर सस्पेंस बरकरार है. गुरुवार रात दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और गठबंधन नेताओं के बीच अहम बैठक हुई. सूत्रों के अनुसार इस बैठक में कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दिया. शिंदे, जो शुरू में सीएम पद पर बने रहना चाहते थे, इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से हिचक रहे हैं. उनके विरोध ने भाजपा के लिए राजनीतिक दुविधा पैदा कर दी है. शिंदे कल अपने गांव चले गए थे. इसके बाद महायुति में बेचैनी और बढ़ गई, खासकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में बेचैनी बढ़ती जा रही है. हालांकि शिवसेना शिंदे गुट में भी उतनी ही बेचैनी है.
सूत्रों से पता चला है कि कनाथ शिंदे ने भाजपा से अपने शिवसेना गुट के किसी अन्य नेता को उपमुख्यमंत्री पद देने के लिए कहा है. वह सरकार से पूरी तरह बाहर रहने पर भी विचार कर रहे हैं. हालांकि, भाजपा नई सरकार में उनके महत्व का हवाला देते हुए शिंदे को अलग होने देने को तैयार नहीं है. कथित तौर पर शिंदे को लगता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद उपमुख्यमंत्री की भूमिका स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
श्रीकांत शिंदे पर नहीं बन रही बात
उन्होंने कथित तौर पर अपने बेटे श्रीकांत शिंदे के लिए उपमुख्यमंत्री पद की डिमांड की है. हालांकि, इस प्रस्ताव को भाजपा द्वारा मंजूरी मिलने की संभावना नहीं है. श्रीकांत शिंदे के पास ऐसे उच्च-प्रोफ़ाइल पद के लिए आवश्यक राजनीतिक अनुभव नहीं है. भाजपा का मानना है कि उन्हें इस भूमिका में लाने से भाई-भतीजावाद के आरोप लग सकते हैं. इसके अलावा, शिंदे के गुट के कई वरिष्ठ नेता खुद को दरकिनार महसूस कर सकते हैं, जिससे आंतरिक अशांति पैदा हो सकती है
अगर श्रीकांत शिंदे डिप्टी सीएम पद लेते हैं तो उन्हें अजित पवार जैसे अनुभवी नेताओं के साथ रखा जाएगा. दोनों के बीच तुलना शिवसेना गुट की छवि को कमजोर कर सकती है. भाजपा के रणनीतिकारों को यह भी डर है कि श्रीकांत की आक्रामक राजनीतिक शैली सरकार के भीतर मुद्दों को जन्म दे सकती है.
शिंदे ने BJP की पहले की थी मदद
भाजपा एकनाथ शिंदे को अपनी सरकार में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखती है. पिछले एक साल में शिंदे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का एक प्रमुख चेहरा बनकर उभरे हैं. कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल जैसे प्रमुख मराठा नेताओं के साथ उनके जुड़ाव ने उनकी स्थिति को मजबूत किया है. मराठों के बीच शिंदे की लोकप्रियता और विश्वसनीयता भाजपा के लिए मूल्यवान संपत्ति है. मराठा आरक्षण मुद्दे पर भविष्य में विरोध या अशांति की स्थिति में, भाजपा का मानना है कि सरकार में शिंदे की भागीदारी तनाव को कम करने में मदद करेगी.