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56 घंटे तक ऊपर नीचे होती रही पूरे गांव की सांसें, फिर एक झटके में टूट गई उम्मीदें

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दौसा. राजस्थान के दौसा जिले के कालीखाड़ गांव में बोरवेल में गिरे आर्यन को बचाने के लिए 56 घंटे तक लंबा रेस्क्यू ऑपेरशन चला. उसके बावजूद आर्यन को बचाया नहीं जा सका. सरकारी मशीनरी के तमाम प्रयास इस घटना में बौने साबित हो गए. बुधवार की रात करीब 11:45 बजे जब रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा हुआ तब तक आर्यन की सांसें थम चुकी थी. 56 घंटों तक आर्यन का परिवार और पूरा गांव उम्मीद के सहारे वहां डटा हुआ था. रेस्क्यू ऑपरेशन को देखता रहा. इन 56 घंटों में बार-बार उनकी सांसें ऊपर नीचे होती रही. लेकिन रात गहराने के साथ ही आखिरकार वह उम्मीद टूट गई.

भले ही सरकारी तंत्र ने आर्यन को बचाने के लिए पुरजोर प्रयास किए हो लेकिन वह उसे बचाने में सफल नहीं हो पाया. राजस्थान समेत देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे हादसे बार-बार सामने आते हैं. लेकिन ये हादसे क्यों हो रहे हैं इस पर विचार कम ही किया जाता है. किया भी जाता है तो कुछ समय के लिए. फिर वही ढाक के तीन पात हो जाते हैं. नियम कायदे की बातें और आदेश दफ्तर दाखिल हो जाते हैं. फिर नए हादसे के समय वे कागजों से बाहर आते हैं.

बोरवेल हादसों को लेकर सुलगते 10 सवाल
– आखिरकार खुले बोरवेल की सुरक्षा को लेकर सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठाती?
– क्या सरकारी मशीनरी ने खुले बोरवेल को लेकर कोई निरीक्षण अभियान चलाया आज तक?
– खेतों में और घरों के आसपास बने इन खुले बोरवाल कोई नियम कायदे क्यों नहीं बनाए जाते?
– इतने हादसों के बावजूद खुले बोरवोल की सुरक्षा नहीं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती?
– बोरवेल हादसों से पार पाने के लिए सरकार के पास सुरक्षित, मजबूत और बेहतर रणनीति क्यों नहीं है?
– बोरवेल हादसों से निपटने के लिए हर बार संसाधनों का टोटा क्यों सामने आता है?
– क्या बोरवेल खोदने की अनुमति देने से पहले उसकी सुरक्षा को लेकर मानक तय नहीं किए जाने चाहिए?
– जिला प्रशासन क्यों नहीं समय-समय खुल बोरवेल को निरीक्षण अभियान चलाता?
– बोरवेल खुदवाने वाले खुद लोग भी क्यों नहीं उनकी सुरक्षा पर ध्यान देते हैं?
– क्यों बोरवेल के लिए वहां तारबंदी या बांउड्रीवाल जैसे सुरक्षा मानक नहीं अपनाए जाते?

बोरवेल में भोगी फंसी होने के कारण आई काफी परेशानियां
आर्यन के बोरवेल में गिरने की घटना और उसके बाद हुए प्रयासों को देखें तो ये सवाल जहन में आते हैं. मासूम आर्यन सोमवार को खेलते खेलते बोरवेल में गिर गया था. इसकी सूचना पर शुरुआत में स्थानीय थाना पुलिस मौके पर पहुंची. उसके बाद खुद दौसा के कलेक्टर देवेंद्र कुमार ने मोर्चा संभाला. सिविल डिफेंस, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमों को बुलाया गया. करीब 56 घंटे तक लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया. इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान भी काफी परेशानियां सामने आई. आर्यन जिस जगह पर फंसा हुआ था वहां पर एक भोगी (बोरवेल खोदते समय मिट्टी निकालने वाला नामनुमा चीज) फंसी हुई थी. उसके कारण आर्यन को निकालने के लिए जो उपकरण नीचे भेजे जा रहे थे वे विफल साबित हो रहे थे.

सीसीटीवी फुटेज ठीक तरीके से नहीं आ रहे थे
इतना ही नहीं आर्यन के सीसीटीवी फुटेज भी ठीक तरीके से नहीं आ रहे थे. शुरुआत से ही एक और तो जहां एनडीआरएफ की टीम बोरवेल में सीधे ही रॉड के माध्यम से बच्चे को निकालने के लिए उपकरण डाल रही थी. वहीं दूसरी ओर बोरवेल के बगल में गड्ढा खोदने की प्रक्रिया भी की जा रही थी. इसी बीच दौसा कलेक्टर देवेंद्र कुमार ने पाईलिंग मशीन को मौके पर बुलाने की प्रक्रिया शुरू की. काफी प्रयास के बाद घटना के दूसरे दिन पाईलिंग मशीन पहुंची. बुधवार को सुबह पाईलिंग मशीन ने काम करना शुरू किया.

पाईलिंग मशीन ही खराब हो गई
बुधवार की सुबह करीब 10 बजे पीलिंग मशीन में खराबी आ गई. उसके बाद मौके पर दूसरी पाईलिंग मशीन बुलाई गई. शाम करीब 7 बजे दूसरी मशीन से खुदाई का काम शुरू हुआ और करीब 150 फीट का कुईनुमा गड्ढा बोरवेल के पास खोदा गया. इसी बीच एनडीआरएफ के प्रयास भी जारी थे. उन प्रयासों को सफलता उस समय मिली जब एनडीआरएफ की ओर से बोरवेल में भेजा गया हुक आर्यन की शर्ट में फंस गया. वहीं दूसरी रिंग से आर्यन के पैर कैप्चर किए गए. इससे पहले एक अंब्रेलानुमा उपकरण आर्यन के नीचे लगा दिया गया था ताकि वह नीचे ना जा पाए.

डॉक्टर्स ने आर्यन को मृत घोषित किया
शाम को एनडीआरएफ की टीम को सफलता हाथ लगने लगी. उसके बाद रात करीब 10 बजे एनडीआरएफ की टीम ने धीरे-धीरे बोरवेल में डाली गई राड को बाहर निकलना शुरू किया. तब यह तय हो गया था कि आर्यन को बाहर निकाला जा रहा है. रात करीब पौने बारह बजे आर्यन को बोरवेल से बाहर निकाल लिया गया. उसे तत्काल दौसा जिला अस्पताल भिजवाया गया. लेकिन वहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

देश तरक्की कर रहा है और चांद पर जा रहा है
हालांकि 56 घंटे के प्रयास के बाद आर्यन की सांस तो नहीं बच सकी लेकिन पुलिस और प्रशासन के साथ-साथ एनडीआरएफ के प्रयास से उसे बोरवेल जरुर निकाल लिया गया. सवाल ये हैं कि देश तरक्की कर रहा है. चांद पर जा रहा है. इसके बावजूद भी बोरवेल के हादसों के बाद इस तरह लंबे समय तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलना पड़ते है. अभी तक इस तरह के हादसों के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए उच्च तकनीक के संसाधन क्यों मौजूद नहीं है?