भारत के बाजार नियामक सेबी (सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) ने हाल ही में रिसर्च एनालिस्टों (RA) के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इसी को लेकर रिसर्च एनालिस्ट नाखुश हैं और उनके बीच असंतोष की एक लहर है. कई विश्लेषक तो इन नियमों से इतने परेशान और नाराज हैं कि उन्होंने अपना पेशा तक छोड़ने का फैसला कर लिया है.
8 जनवरी को सेबी ने “रिसर्च एनालिस्टों के लिए दिशानिर्देश” नामक एक नोटिफिकेशन जारी किया. इन दिशानिर्देशों के तहत नए लोगों के लिए रिसर्च एनालिस्ट के तौर पर रजिस्ट्रेशन आसान बना दिया गया है. साथ ही, पहले से रजिस्टर्ड रिसर्च एनालिस्टों पर कई तरह के अनुपालन (Compliance) संबंधी बोझ बढ़ा दिया गया है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने से न केवल बाजार में समस्याएं बढ़ेंगी, बल्कि ईमानदार और कुशल पेशेवरों के लिए इस बिजनेस में रहना भी मुश्किल हो जाएगा.
मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक बड़े लीगल एक्सपर्ट और फिनसेक लॉ एडवाइजर्स (Finsec Law Advisors) के फाउंडर संदीप पारेख ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट X पर पोस्ट किया कि “सेबी अपनी नियमावली में जरूरत से ज्यादा कड़ाई कर रहा है और इसके परिणामस्वरूप योग्य और ईमानदार सलाहकार बाजार से बाहर हो रहे हैं.” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यही रवैया जारी रहा तो केवल अयोग्य और बेईमान सलाहकार ही बाजार में रह जाएंगे.
रिसर्च एनालिस्टों ने क्या-क्या कहा?
कुछ प्रमुख रिसर्च एनालिस्टों ने अपनी सेवाएं बंद करने की घोषणा करते हुए इन नियमों पर चिंता जताई है. सेंटिनल रिसर्च के मालिक नीरज मराठे ने बताया कि जब रिसर्च एनालिस्ट से जुड़ी नियमावली का मसौदा जारी हुआ था, तब उन्होंने अपनी सेवाएं अस्थायी रूप से रोक दी थीं, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि अंतिम नियमावली बेहतर होगी. उन्होंने लिखा, “दुर्भाग्य से, अंतिम नियमावली और भी खराब निकली!”
एक दूसरी बड़ी चिंता यह है कि नए नियमों के तहत रिसर्च एनालिस्ट एक बार में केवल 3 महीने की फीस ही एडवांस में ले सकते हैं. स्टालवर्ट एडवाइजर्स ने अपने रिसर्च कार्य बंद करने की घोषणा करते हुए लिखा कि “ग्राहक रजिस्ट्रेशन, केवाईसी, ऑडिट जैसी प्रक्रियाओं की लागत तो सहन की जा सकती है, लेकिन हर तीन महीने में सर्विस को रिन्यू कराने की आवश्यकता ने लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के बजाय शॉर्ट टर्म एक्टिविटीज़ पर ध्यान केंद्रित करने का जोखिम बढ़ा दिया है.”
स्टालवर्ट एडवाइजर्स ने कहा कि उनका इन्वेस्टमेंट होराइज़न औसतन तीन से पांच वर्षों का होता है और निवेश में धैर्य बनाए रखना ही सफलता का सूत्र है. उन्होंने चेतावनी दी कि “बार-बार गतिविधियों पर जोर देने का परिणाम निवेशकों के लिए विनाशकारी हो सकता है. हम ‘टिप्स देने वाले’ बनने की ओर नहीं बढ़ना चाहते.”
क्या है विवाद की मुख्य वजह
नए दिशानिर्देशों के अनुसार, रिसर्च एनालिस्ट अब एक निवेशक या एक परिवार से अधिकतम 1,51,000 रुपये प्रति वर्ष का शुल्क ले सकते हैं. यह सीमा हर तीन साल में एक बार कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (CII) के आधार पर रिवाइज़ जा सकती है. इसके लिए भी सेबी की परमिशन चाहिए होगी. अन्य समस्याओं में कस्टमर द्वारा सर्विस छोड़ने पर रिफंड करना, थर्ड-पार्टी एजेंसी से परफॉर्मेंस का वेरिफिकेशन और सर्विस से जुड़ी शर्तों पर राजी होना भी शामिल है.
इस बारे में एक इंडिपेंडेट RA नितिन मंगल ने इस नियम को “आपदा” करार दिया. उन्होंने सवाल किया कि सर्विस सेक्टर में फीस की लिमिट कैसे तय की जा सकती है? हर किसी की सर्विस और रिपोर्ट का स्तर अलग होता है.
RA ने इस पर भी आपत्ति जताई कि पूरी फैमिली के लिए एक फीस लिमिट तय करना अनुचित है. इसके अलावा, एडवांस शुल्क लेने की लिमिट ने RA और उनके ग्राहकों दोनों को शॉर्ट टर्म निवेश पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर कर दिया है. मंगल ने कहा, “लंबे समय के निवेश में एक साल तक बने रहने की आवश्यकता होती है. लेकिन, यदि किसी ग्राहक को 3 महीने में परिणाम नहीं मिलता, तो वह सर्विस बंद कर सकता है.”