बजट 2025 से पहले केंद्र सरकार ने इकोनॉमिक सर्वे जारी किया है. इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास और भविष्य की रूपरेखा आमजन के सामने रखी गई है. इकोनॉमिक सर्वे में सरकार की ओर से कहा गया है कि हफ्ते में काम के घंटों पर लगाम लगाना मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान पहुंचा रहा है. सरकार ने यह बात ऐसे समय में सामने रखी है जब पूरे देश में काम के घंटों को लेकर भारी बहस छिड़ी हुई है. इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति से लेकर एलएंडटी के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यम इस काम के घंटों को 75-90 घंटे तक किए जाने की सिफारिश दबी जुबान में कर चुके हैं.
इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है काम के घंटों को दिन, हफ्ते, तिमाही और साल के हिसाब से एक तय सीमा में बांध देने से कर्मचारियों की पैसा कमाने की क्षमता भी सीमित हो जाती है. सर्वे के अनुसार, माल को कम समय में मार्केट तक पहुंचाने के लिए जरूरी है कि प्रोडक्शन को बढ़ाया जाए. बकौल सर्वे, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन उद्योगों को यह आजादी देती है कि वह काम के घंटों का औसत 3 हफ्ते के अंतराल पर पूरा करें.
भारत में क्या है स्थिति
भारत में फैक्ट्रीज एक्ट (1948) के सेक्शन 51 के तहत किसी भी वयस्क कर्मचारी को हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम नहीं करने दिया जाना चाहिए. सर्वे में इसी एक्ट के एक अन्य सेक्शन 65(3)(iv) की भी बात की गई है. इस सेक्शन के अनुसार, कोई भी कर्मचारी लगातार 7 दिन से ज्यादा ओवरटाइम नहीं कर सकता है. इसके अलावा किसी भी तिमाही में ओवरटाइम 75 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए. सर्वे में कहा गया है कि काम के घंटों पर यह प्रतिबंध कर्मचारियों को और पैसा कमाने से रोक रहा है.