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पाक-चीन के ड्रोन के पर कतरने की तैयारी तेज, स्वदेशी एंटी ड्रोन सिस्टम को नहीं दे पाएंगे गच्चा

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रूस यूक्रेन की जंग में बड़े फाइटर एयरक्राफ्ट की जगह छोटे ड्रोन ने ले ली है. रूस के सेरातोव में एक 9/11 जैसा हमला ड्रोन के जरिए हुआ था. एक ड्रोन तेजी से उड़ता हुआ आया और एक 38 मंज़िला इमारत में जा घुसा. इस तरह के मॉर्डर्न हथियारों में नभी देशों चिंता में डाल दिया. वहज है कि हमले उस देश के खिलाफ सफल हुआ जिसके पास दुनिया के सबसे बेहतरीन एंटी ड्रोन सिस्टम मौजूद है. रूस के पास करशुका , लीर-3, रेपलेंट-1, पोल 21 एंटी ड्रोन एंड जैंमिग सिस्टम होने के बावजूद ड्रोन उनके घर तक पहुंचे गए. इस तरह के ड्रोन अटैक की संभावनाओं के चलते भारतीय सेना अपने एंटी ड्रोन ताकत को बड़ी तेजे आगे बढ़ाना शुरू किया है. सेना ने एंटी ड्रोन पावर माइक्रोवेव सिस्टम की खरीद करने प्रक्रिया शुरू कर दी है. स्वदेशी कंपनियों से RFI रिक्वेस्ट फ़ॉर इंफॉरमेशन के जरिए जानकारी मांगी गई है. सेना को 9 ऐसे सिस्टम खरीदने हैं. इसका एक प्रोटोटाइप भी सेना के पास आया है.

रडार की नजरों से नहीं बचेगा कोई ड्रोन
भारतीय सेना लो लेवल लाइट वेट रडार की खरीद जारी है. इंटिग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंट्रिडेक्शन सिस्टम के तहत स्वदेशी कंपनियों ऐसे सिस्टम चाहिए. इनकी रेंज कम से कम 10 किलोमीटर दूर से ड्रोन को डिटेक्ट भी कर सके और ट्रेक भी कर सके. 5 किलोमीटर के दायरे में उसे पूरी तरह से नष्ट कर दे. एक साथ 100 टार्गेट को डिटेक्ट कर सके और कम से कम 20 को एंगेज कर सके. यह सिस्टम ऐसा होने चाहिये जिसे आसानी से रोड, रेल, एयर और समुद्र के रास्ते आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सके. यह सिस्टम वेहिकल माउंटेड किया जा सके और यह सिस्टम आसानी से एयर डिफेंस कमॉड और रिपोर्टिंग सिस्टम के साथ इंटीग्रेटे किया जा सके. यह सिस्टम गर्म रेगिस्तान के 55 डिग्री तापमान पर भी पूरी तरह से काम कर से को हाई ऑल्टिट्यूड के माइनस 40 डिग्री में भी आसानी से ऑप्रेट किया जा सके

हाईपावर माक्रोवेव सिस्टम से गिराए जाएंगे ड्रोन
हाइ पावर माइक्रोवेव सिस्टम से दागी गई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को डिस्टर्ब कर देती है. यह पल्स रेडियो लिंक को डिस्टर्ब करती है और ड्रोन के अंदर के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को नष्ट कर देताी है. यह एक नॉन काईनेटकि सिस्टम है जो कि रेंज के अंदर किसी भी ड्रोन को नष्ट कर सकता है. इसका एक बडा नुकसान यह भी है कि एक तो महंगा बहुत है और इसके चपेट में आकर उस इलाके के उसी प्रकार के अन्य रोड़ियों लिंक वाले अन्य उपकरणों को भी नष्ट कर सकता है. सेना को जरूरत है नैरो बैंड नॉन काइनेटिक हार्ड किल सिस्टम की जो बाकी अन्य उपकरणों को नुकसान ना पहुंचाए. सेना को ऐसा सिस्टम चाहिए जो कि दुश्मन के ड्रोन की पहचान कर सके उसे ट्रैक कर सके और फिर उसे नष्ट कर सके.

काउंटर ड्रोन सिस्टम दो तरह के होते है एक सॉफ्ट किल और एक हार्ड किल.भारतीय सेना एक ऐसा सिस्टम की तलाश कर रही है जिसमें यह दोनों खूबी हो. सॉफ्ट किल का मतलब किसी भी ड्रोन जैम करना या फिर स्पूफिंग माध्यम से गिराया जाता है. जैंमिग में ग्राउंड स्टेशन से किसी फ्रीक्वेंसी पर ऑप्रेट करने वाले ड्रोन की फ्रीक्वेंसी को बाधित कर दिया जाता है जिससे ड्रोन नीचे आ जाता है. सॉफ्ट किल टेंप्रेररी तो हार्ड किल पर्मानेट होता है. हार्ड किल के लिए कई अलग अलग तहर के सिस्टम इस्तेमाल में लाए जाते है जिसमें पहला लेजर वेपन सिस्टम , दूसरा हाइ पावर माइक्रोवेव सिस्टम, तीसरा एंटी ड्रोन गन , चौथा ड्रोन किल सिस्टम जिसमें दुशमन के ड्रोन को काउंटर करने के लिए ड्रोन लॉंन्च किया जाता है और वो उसे नष्ट करता है और पांचवा है वेहिकल माउंटेड काउंटर ड्रोन सिस्टम जिसे स्वार्म ड्रोन अटैक के दौरान इस्तेमाल किया जाता है और एक साथ कई राकेट दागे जाते है और वो उस मदर ड्रोन को हिट करता है जिससे स्वार्म ड्रोन ऑपरेट होते है.