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न वायरल, न कैंसर और न ही…, फिर क्या है यह बला, 30 दिन में 13 को खा गई, छत्तीसगढ़ में मचा हाहाकार

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जम्मू-कश्मीर की रहस्मयी बीमारी ने पहले राजस्थान में अपने पैर पसारे. अब छत्तीसगढ़ में भी अपना आतंक दिखा दिया है. छत्तीसगढ़ के उग्रवाद प्रभावित सुकमा जिले के एक सुदूर गांव में कोहराम मचा हुआ है. यहां एक महीने में 13 ग्रामीणों की जान चली गई. लोग किस बीमारी से जान गंवा रहे हैं किसी को पता नहीं है. हालांकि, हाल ही में हुईं 5 मौतों को लेकर जिला प्रशासन का कहना है कि केवल 2 की मौत का कारण अभी पता नहीं चला है.

पिछले साल रहस्मयी बीमारी जम्मू में बरपा रही थी कहर
गौरतलब है, पिछले साल दिसंबर में जम्मू के बथाल में इस रहस्यमयी बीमारी के कारण सिर्फ एक महीने के अंदर 17 लोगों की मौत हो गई थी. हर तरफ डर का माहौल है. यहां तक कि गांव में सेना को भी बुला लिया गया था. अब तक इस बीमारी से गांव के 38 लोग प्रभावित हो चुके हैं. इनमें से 17 की मौत चुकी है. सरकार और यहां तक कि गृह मंत्रालय की टीम भी इस बीमारी को समझने-बूझने में लगे हुए हैं. वहीं, प्रशासन ने पूरे गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया. गांव में बाहरी लोगों के आने पर रोक लगा दी गई और प्रभावित परिवारों को भी घरों में रहने को कहा गया था.

अब छत्तीसगढ़ के लोगों में खौफ
अब एक बार फिर लोगों में खौफ पैदा हो गया है. धनीकोर्ता से अचानक लोगों की जान जानें की खबर सामने आने लगी. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी और रायपुर से 400 किमी दक्षिण में स्थित गांव में तुरंत एक स्वास्थ्य टीम भेजी गई. सूत्रों का कहना है कि सभी पीड़ितों ने अपनी मौत से पहले सीने में दर्द और लगातार खांसी की शिकायत की थी. ओडिशा सीमा के करीब छिंदगढ़ ब्लॉक के इस छोटे से गांव में लगभग हर घर के लोग प्रभावित है. यहां रहने वालों में डर है कि अगला नंबर उनका होगा.

क्या बोले डॉक्टर?
सुकमा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. कपिल देव कश्यप ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि हाल ही में 5 मौतें हुई हैं. उन्होंने कहा, जिला अस्पताल में 3 लोगों की मौत उम्र से जुड़ी बीमारियों के कारण हुई है और बाकी 2 की मौत के कारणों का पता लगाया जा रहा है. हमारी स्वास्थ्य टीमों ने पाया है कि इसका मुख्य कारण मौसम में बदलाव है, जो महुआ की कटाई के समय के साथ मेल खाता है, जब ग्रामीण जंगल में जाते हैं और पूरे दिन महुआ इकट्ठा करते हैं. इससे वे बीमार पड़ रहे हैं.

जंगल जाने पर अड़े किसान
कश्यप ने आगे कहा कि चिकित्सा शिविर लगातार लोगों के इलाज के लिए काम कर रहे हैं. ग्रामीणों को ओआरएस दिया जा रहा है क्योंकि वे महुआ इकट्ठा करने के लिए जंगल जाने पर अड़े हुए हैं. घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया जा रहा है और जंगल से लौटने वाले या खेत में काम करने के बाद बहुत ज़्यादा पसीना आने वाले लोगों को ओआरएस दिया जा रहा है. बेचैनी की शिकायत वाले अन्य लोगों का इलाज किया जा रहा है और उनकी निगरानी की जा रही है. हमने उनसे कहा है कि अगर वे अस्वस्थ महसूस करते हैं तो तुरंत रिपोर्ट करें.

एक सरकारी डॉक्टर के अनुसार, उन्हें दो दिन पहले ही मौतों के बारे में बताया गया और तुरंत मेडिकल टीमें भेजी गईं. डॉक्टर ग्रामीणों की स्वास्थ्य जांच कर रहे हैं और परीक्षण के लिए रक्त और मूत्र के नमूने जुटाए हैं. चूंकि सभी पीड़ितों का अंतिम संस्कार कर दिया गया है और शव परीक्षण नहीं किया गया है, इसलिए मौतों का कारण अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है.