अदालत की छुट्टियों को ‘औपनिवेशिक विरासत’ बताते हुए एक संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एक साथ न जाकर बारी-बारी से छुट्टियों पर जाएं. द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी 133वीं रिपोर्ट में कहा, ‘लंबित मामलों को कम करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है. हालांकि, साथ ही यह एक निर्विवाद तथ्य है कि न्यायपालिका में छुट्टियां एक औपनिवेशिक विरासत हैं और पूरी अदालत के सामूहिक रूप से छुट्टियों पर जाने से वादकारियों को गहरी असुविधा होती है.’
भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाले संसदीय पैनल ने अदालत की छुट्टियों पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के एक सुझाव का भी समर्थन किया, जिसमें कहा गया था, ‘सभी न्यायाधीशों के एक ही समय में छुट्टी पर जाने के बजाय, अलग-अलग न्यायाधीशों को साल भर में अलग-अलग समय पर छुट्टी लेनी चाहिए. ताकि अदालतें लगातार खुली रहें और मामलों की सुनवाई के लिए हमेशा बेंच मौजूद रहें. न्यायपालिका द्वारा इस पर विचार किया जाना चाहिए.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अदालतों में न्यायाधीशों के एक साथ छुट्टियों पर जाने की प्रथा को खत्म करने की मांग मुख्य रूप से दो कारकों के कारण उठती है, एक तो हमारी अदालतों में लंबित मामलों की भारी संख्या है, और दूसरा अदालतों की छुट्टियों के दौरान वादकारियों को होने वाली असुविधा है. आम आदमी की धारणा है कि इतनी बड़ी संख्या में मामले लंबित होने के बावजूद उनके न्यायाधीश लंबी छुट्टियों पर चले जाते हैं. इसके अलावा, छुट्टियों के दौरान, अवकाश अदालतों या बेंच की संख्या कम होने के बावजूद वादियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है.’