मोदी सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना जो पिछले 4 साल से काफी सुस्त चाल से चल रही है. सुस्ती आलम ये रहा कि वित्तवर्ष 2023 में सरकार योजना से 60 फीसदी पीछे रह गई. चुनाव से पहले सरकार की यह धीमी चाल पैसे जुटाने की योजना में बाधा डाल सकती है.
सूत्रों का कहना है कि सरकार ने चालू वित्तवर्ष के लिए बजट में 51 हजार करोड़ रुपये विनिवेश (Disinvestment) के जरिये हासिल करने का लक्ष्य रखा था. फिलहाल इसकी सुस्त रफ्तार की वजह से विनिवेश के जरिये महज 21 हजार करोड़ रुपये ही वसूल हो सके. यानी सरकार अपने बजट में दिए लक्ष्य से 60 फीसदी पीछे रह गई. यानी करीब 30 हजार करोड़ की कम वसूली हो सकी है.
पिछले साल भी पीछे रहा था लक्ष्य
ऐसा नहीं है कि सरकार को इस साल ही लक्ष्य से पीछे रहना पड़ा है, बल्कि पिछले वित्तवर्ष 2022-23 में भी विनिवेश लक्ष्य काफी पीछे रहा गया था. तब सरकार ने 65 हजार करोड़ रुपये विनिवेश से वसूलने का लक्ष्य बनाया था. फिलहाल सरकार 35,293 करोड़ रुपये ही वसूल कर सकी और लक्ष्य से 54 फीसदी पीछे रह गई. सूत्रों का यह भी कहना है कि चुनावी साल में इस योजना की रफ्तार और सुस्त पड़ती दिख रही है.
4 साल से धीमी रफ्तार
विनिवेश के जरिये पैसे जुटाने का लक्ष्य 4 साल में सिर्फ एक बार पूरा किया जा सका है. इससे पहले वित्तवर्ष20218-19 में ही विनिवेश का लक्ष्य पूरा हो सका था. जब सरकार ने बजट में रखे 80 हजार करोड़ के लक्ष्य से ज्यादा यानी 84,972 करोड़ रुपये वसूले थे. इस साल अगर आईडीबीआई बैंक का विनिवेश पूरा हो गया तो सरकार को 20 हजार करोड़ और मिल सकते हैं. इसकी पूरी तैयारी फिलहाल हो सकी है.
चुनावी साल में सुस्त रफ्तार
सूत्रों का कहना है कि आने वाले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि अगले साल मार्च-अप्रैल में लोकसभा चुनाव भी होना है. ऐसे में सरकार अपने लक्ष्य को थोड़ा धीमा कर सकती है. फिलहाल आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेचने की कवायद चल रही है. सरकार चालू वित्तवर्ष में ही लक्ष्य को पूरा करना चाहती है, लेकिन चुनावी साल होने के नाते इसमें बाधा आ सकती है.