ISRO का मिशन मून चंद्रयान-3 के रूप में चांद पर पहुंचने वाला है. उम्मीद की जा रही है कि लैंडर के उतरने के बाद ISRO चांद से कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा लेगा. चंद्रयान-3 का ये मिशन सिर्फ 14 दिन का होगा, लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये 14 दिन से बढ़कर 28 दिन भी हो सकता है. इसके लिए लैंडर और रोवर में उसे चार्ज करने की उच्च तकनीक विकसित की गई है. ऐसा कैसे होगा इसको लेकर इसरो से जुड़े वैज्ञानिकों से अहम जानकारियां सामने आई हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्रपोल्शल मॉडल और लैंडर सैपरेशन हो चुका है और अलग अलग ऑर्बिट में जा रहा है. लैंडर 100 किलोमीटर की दूरी से लैंडिंग की तैयारी शुरू कर दी गई है. इसरो के डीटीडीआई के डिप्टी डायरेक्टर एन रवा मितई के मुताबिक, चंद्रयान 3 की लैंडिंग 23 अगस्त को ही की जाएगी. उन्होंने इस मिशन के सफल होने के सवाल पर कहा कि चंद्रयान 2 के मुकाबले चंद्रयान 3 अपडेटेड मिशन है, इसे देखते हुए लैंडिंग के पूरी तरह से सफल होने की पूरी संभावना है.
इसरो वैज्ञानिक का मानना है कि पहले जो चंद्रयान-2 की असफलता थी ऐसा अब नहीं होगा. उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 में इसरो ने इस बार सेंसर को काफी इंप्रूव किया गया है. एक दो सेंसर एक्स्ट्रा भी डाले गए हैं. पैरों को भी मजबूती दी गई है और इसी के चलते सॉफ्ट लैंडिंग के सफलता की पूरी संभावना है. स्लीपिंग एंड वेकप सर्किट के डिजाइन पर वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर इतनी ठंड है कि वहां पर इलेक्ट्रोनिक्स काम नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा कि चांद पर माइनस 180 डिग्री सेंटीग्रेट तक ठंडक होती है. इसलिए वहां से आने के लिए मशीन को गरम करना जरूरी है. इसी को देखते हुए गर्म करना, उसकी बैटरी चार्ज करने की व्यवस्था लैंडर और रोवर दोनों में की गई है. यदि ये हो जाता है तो चंद्रयान 3 का जो मिशन 14 दिन का है उसे बढ़ाकर 28 दिन या उससे आगे किया जा सकता है. दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग पर कहा गया कि वहां कोई गया नहीं है और इस लिहाज से वहां विज्ञानिक दृष्टि से कुछ नई संभावना बन सकती है.