1970 के दशक के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब दिल्ली, आगरा और वृन्दावन में बाढ़ जैसे हालात बने, हरियाणा ने तो अपने इतिहास में पहली बार बाढ़ की घोषणा की; वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश के चलते अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण कई घर ढह गए और जगह-जगह सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं.
इस साल जुलाई के महीने में उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य मूसलाधार बारिश के कहर से जूझ रहे थे. यह असाधारण था क्योंकि मानसून और पश्चिमी विक्षोभ एक साथ आए थे. News18 द्वारा विश्लेषण किए गए आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल भारत में 2018 के बाद से जुलाई में सबसे अधिक ‘मूसलाधार’ बारिश वाले दिन देखे गए.
इस बारिश को को छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है: बहुत हल्की वर्षा (2.4 मिमी तक), हल्की वर्षा (2.5 मिमी से 15.5 मिमी), मध्यम वर्षा (15.6 मिमी से 64.4 मिमी), भारी वर्षा (64.5 मिमी से 115.5 मिमी), बहुत भारी वर्षा (115.6 मिमी से 204.4 मिमी) और अत्यधिक भारी वर्षा (204.5 मिमी से अधिक)
जुलाई 2018 के बाद से इस साल पूरे भारत में बेहद मूसलाधार बारिश की घटनाओं में 60 फीसद की बढ़ोतरी हुई है और जुलाई 2022 की तुलना में यह इज़ाफा करीब 30 प्रतिशत है. इसके अलावा, 2020 के बाद से जुलाई में बेहद मूसलाधार बारिश की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल जुलाई में भारी और बहुत भारी वर्षा की घटनाओं की संख्या असाधारण रूप से अधिक थी.
8 जुलाई को सुबह 8.30 बजे से 36 घंटों में, दिल्ली में अभूतपूर्व 260 मिमी बारिश दर्ज की गई. यह इस महीने के 195.8 मिमी बारिश के कोटे से 30 फीसद ज्यादा थी. 8 जुलाई को सुबह 8.30 बजे से 24 घंटे की अवधि में, राष्ट्रीय राजधानी में 153 मिमी बारिश दर्ज की गई. यह न केवल 25 जुलाई 1982 (169.9 मिमी) के बाद से एक दिन में हुई सबसे अधिक बारिश थी, बल्कि 1958 के बाद से जुलाई में एक दिन में तीसरी सबसे अधिक बारिश थी. इसी तरह की कहानी कई अन्य क्षेत्रों में दोहराई गई थी.
‘इस मूसलाधार बारिश की वैश्विक तापमान में इजाफा’
जून में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, वैश्विक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस का इजाफा होने पर उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में मूसलाधार बारिश में 15 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद की जा सकती है. ऊर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) के शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन उत्तरी गोलार्ध में पहाड़ों पर बर्फबारी को वर्षा में बदल रहा है. तरल पानी की वे लहरें बाढ़, भूस्खलन और मिट्टी के कटाव सहित खतरों का एक अलग सेट लेकर आती हैं.
अध्ययन में पाया गया कि जबकि उत्तरी गोलार्ध की सभी पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ से बारिश की ओर बदलाव देखा जा रहा है, बेहद मूसलाधार बारिश की घटनाओं का सबसे बड़ा खतरा उत्तरी अमेरिकी प्रशांत पर्वत श्रृंखला, हिमालय और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में हैं.
दिलचस्प बात यह है कि सर्वाधिक भारी वर्षा की घटनाओं के बावजूद, अब तक, इस वर्ष का मानसून पिछले दो वर्षों की तुलना में सबसे शुष्क रहा है. 1 जून से अब तक भारत में 616.6 मिमी बारिश हुई है. 664.7 मिमी की लंबी अवधि के औसत (एलपीए) की तुलना में यह लगभग 7 प्रतिशत कम है. पिछले दो सालों से तुलना करें तो इस साल भारत में सबसे कम बारिश हुई है.
जबकि अगस्त में अभी भी चार दिन बाकी हैं, भारत में इस महीने सिर्फ 152.1 मिमी बारिश हुई है, जो 2022 में इसी महीने में हुई बारिश से लगभग 42 प्रतिशत कम है. यहां तक कि जुलाई और जून में भी पिछले साल की तुलना में बारिश कम थी.