छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Elections) में कांग्रेस (Congress) की हार के पीछे भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) सरकार के ग्रामीण इलाकों पर बहुत ज्यादा फोकस, भाजपा की ‘सांप्रदायिक लामबंदी’ और पार्टी में लंबे समय से चली आ रही अंदरूनी कलह को कारण बताया गया है. कांग्रेस पार्टी की टॉप लीडरशिप ने शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के नेताओं के साथ हार पर लंबा विचार-मंथन किया. जिसमें ये राय उभरकर सामने आई. कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश चुनावों में हार की समीक्षा भी हुई. इस बैठक में राहुल गांधी (Rahul Gandhi), कमल नाथ, दिग्विजय सिंह और रणदीप सुरजेवाला सहित वरिष्ठ नेता शामिल हुए.
कांग्रेस की इस बैठक में ईवीएम (EVMs) की भूमिका पर सवाल उठाए गए. कुछ नेताओं ने महसूस किया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस का ध्यान महज एक व्यक्ति कमलनाथ पर था. जिसके कारण पार्टी ने भाजपा के खिलाफ समुदायों के सामूहिक नेताओं को खड़ा करने का काम नहीं किया. यह भी नोट किया गया कि भाजपा ने ओबीसी वर्चस्व वाली लगभग 80 फीसदी सीटें जीतीं और शहरी इलाकों में लोगों ने भाजपा को वोट दिया. यह कहा गया कि यह काफी हद तक एससी/एसटी और अल्पसंख्यकों का मजबूत समर्थन था, जिसके कारण कांग्रेस ने अपना 2018 के चुनावों का वोट शेयर बरकरार रखा.
छत्तीसगढ़ के बारे में कांग्रेस के नेताओं ने रेखांकित किया कि कांग्रेस ने 2018 का 42 फीसदी का अपना वोट शेयर लगभग बरकरार रखा था. मगर भाजपा ने अपने वोटों में पिछली बार से लगभग 13 फीसदी की बढ़ोतरी की. जो कि जोगी कांग्रेस जैसी पार्टियों को किनारे लगाकर छोटे वोटर समूहों को अपने पाले में करने का नतीजा था. यह नोट किया गया कि पूरी तरह से द्विध्रुवीय मुकाबला इस तथ्य से साफ था कि भाजपा और कांग्रेस कुल वोटों का 76 फीसदी हासिल करते थे, लेकिन इन चुनावों में उनके बीच 88.5 फीसदी वोट बंट गए.