बिलासपुर –यहां दर्द बया कर रहें हैं सहायक शिक्षक से शिक्षक पद पर पदोन्नति पाने के उपरांत स्कूल संशोधन कराने वाले चार हजार शिक्षकों की जिन्हे माननीय हाईकोर्ट ने तो फैरी तौर पर राहत दे दिया है पर संयुक्त संचालक शिक्षा बिलासपुर के साथ राज्य स्कूल शिक्षा विभाग अधिकारी इनको प्रताड़ित करने का लगता हैं मन बना लिए है।
तभी तो हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश की कभी गलत व्याख्या करके शिक्षकों को गुमराह किया गया तो अब ड्यूटी ज्वाइन कराने के 10 दिवस के समय सीमा को आगे बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका लगाकर इन्हे मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा हैं।
दरअसल पूरे प्रदेशभर के संयुक्त संचालक शिक्षा संभाग के माध्यम से बड़ी संख्या में सहायक शिक्षकों का विषय शिक्षक के पदों पर पदोन्नति किया गया था पर उनके पदांकन के समय कुल पदोन्नत पद से कम रिक्त पदों का प्रकाशन करके काउंसलिंग के माध्यम से मनमाने ढंग से उनके अपने ब्लाक और जिला से दूर अन्य ब्लाक और जिले में पोस्टिंग दिया गया जबकि ब्लाक शिक्षा अधिकारी और जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के माध्यम से पर्याप्त पद रिक्तता की जानकारी मंगाया गया था जिसे छुपा दिया गया और जब इसके विरुद्ध शिक्षकों ने आवाज उठाया तो संयुक्त संचालकों ने इनसे बकायदा आवेदन आमंत्रित करके पूर्व आबंटित शाला को संशोधित करके नए आदेश जारी किया गया जिसके आधार पर शिक्षक बकायदा तीन माह अपने संशोधित शाला में कार्य करते हुए वेतन उठाते रहे फिर अचानक से लेनदेन के आरोप लगाते हुए तात्कालिक राज्य शासन के शिक्षा मंत्री ने इस संशोधन आदेश की निरस्त कर दिया और शिक्षकों को बिना सुनवाई का मौका दिए बगैर प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध एकतरफा कार्यमुक्त करके उनके काउंसलिंग के समय आबंटित शाला में कार्यभार ग्रहण करने का फरमान जारी कर दिया। जिसके विरुद्ध शिक्षकों ने माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिस पर माननीय न्यायालय ने वेतन आहरण के लिए उनके मूल शाला संशोधित शाला में कार्यभार कराते हुए वेतन दिए जाने का निर्णय तथा प्रमुख सचिव शिक्षा अधिकारी के अध्यक्षता में गठित समिति के माध्यम से 45दिवस के भीतर उचित निर्णय लिए जाने का निर्णय दिया जिसका राज्य स्कूल शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट के महाधिवक्ता से मार्गदर्शन के नाम पर गलत व्याख्या कराते हुए शिक्षकों को राहत देने से मना कर दिया जिसके विरुद्ध शिक्षकों ने पुनः रिट याचिका दायर किया जिस पर माननीय न्यायालय ने अपने पूर्व आदेश के गलत व्याख्या को अनुचित ठहराते हुए 5 दिसंबर को दोबारा आदेश देते हुए संबंधित शिक्षा अधिकारी जिसमें संयुक्त संचालक शिक्षा बिलासपुर संभाग के संचालक भी शामिल है को अपने आदेश दिनांक से 10 दिवस के भीतर कार्यभार ग्रहण कराते हुए वेतन भुगतान का आदेश दिया जिसकी समय सीमा 14 दिसंबर तक को संयुक्त संचालक शिक्षा बिलासपुर ने पालन नहीं किया बल्कि उल्टे अभ्यावेदन प्रस्तुत करने वाले शिक्षकों का आवेदन लेने से इंकार करते हुए माननीय उच्च न्यायालय में समय सीमा बढ़ाने का रिट याचिका दायर करने चले गया।
यहां यह बताना बहुत जरूरी है की इन उठापटक में प्रभावित शिक्षकों को विगत तीन माह से वेतन भुगतान नहीं हुआ है जिसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा गया है और अब आलम यह है कि किसी तरह कर्ज के सहारे इनका जीवन यापन चल रहा हैं बावजूद इनको इनके अधिकारी सहानुभूति और राहत देने के बजाए और इन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं।
अच्छा यह होता कि ये अधिकार संयुक्त संचालक शिक्षा बिलासपुर संभाग अपने को माननीय उच्च न्यायालय से बड़ा न मानकर राहत देते और शिक्षकों को शिक्षकीय कार्य में सलग्न करके इनके वेतन भुगतान का इंतजाम करते।