भारत रक्षा के क्षेत्र में बीते एक दशक में तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ा है. आधुनिक हथियारों की खरीद लगातार जारी है. भविष्य में सेना जिस दिशा में काम करने जा रही है उससे पड़ोसी मुल्क चीन और पाकिस्तान को भी टेंशन हो जाएगी. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने खुलासा किया कि भारतीय सशस्त्र बलों को अपनी रक्षा अंतरिक्ष आवश्यकताओं को पूरा करना है. हमें डिफेंस स्पेस इको-सिस्टम बनाने की जरूरत है, जिसके लिए करीब 25,000 करोड़ रुपये की धनराशि लगेगी. कहा गया कि इसकी मदद से निगरानी उपग्रहों के निर्माण से लेकर सुरक्षित संचार नेटवर्क तक तैयार किए जाएंगे.
एसआईए-इंडिया द्वारा आयोजित डेफसैट सम्मेलन और एक्सपो को संबोधित करते हुए, जनरल चौहान ने भारत के निजी क्षेत्र से यह अनुरोध किया कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दोहरे उपयोग-क्षेत्र के रूप में अवसर का लाभ उठाएं. सशस्त्र बलों की आवश्यकता को सूचीबद्ध करते हुए, उन्होंने उद्योग से मल्टी-सेंसर उपग्रहों, लॉन्च-ऑन-डिमांड सेवाओं और ग्राउंड स्टेशनों के एक मजबूत नेटवर्क को विकसित करके खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) क्षमताओं को बढ़ाने में भागीदार बनने का आग्रह किया. जनरल चौहान ने NAVIC समूह को मजबूत करके स्वदेशी पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग (पीएनटी) सेवाओं को विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.
सीडीएस ने कहा, “भारतीय सशस्त्र बल अपनी पीएनटी आवश्यकताओं के लिए विदेशी समूहों पर निर्भर नहीं रह सकते. नेविगेशन, सिंक्रोनाइज़ेशन के साथ-साथ लंबी दूरी की भागीदारी के लिए पीएनटी सेवाओं के लिए एक सुरक्षित, विश्वसनीय और लचीला नाविक समूह के निर्माण की आवश्यकता होगी.
जनरल चौहान ने कहा, “हमारी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अगर मैं एक मोटा अनुमान लगाऊं, तो आने वाले कुछ वर्षों में हमारा परिव्यय 25,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा. निजी उद्योग के लिए इस अवसर का उपयोग करने का यह सही समय है. यह अवधि निजी अंतरिक्ष उद्योग के लिए अमृतकाल हो सकती है.