हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है, सभी पार्टी अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ रहे. ताकि 5 अक्टूबर को वोट डालने से पहले वे मतदाताओं पर अपना असर डाल सके. वैसे तो हरियाणा में मुख्य लड़ाई भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच थी, लेकिन अब आम आदमी पार्टी (आप) ने बीच में एंट्री लेकर सारा समीकरण बिगाड़ दिया है, खासकर देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए.
जिस दिन चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, उसी वक्त से यह माना जाने लगा था कि प्रदेश में भाजपा सरकार के पिछले 10 सालों के कामकाज के खिलाफ एक सत्ता-विरोधी बन चुकी है, जिसका लाभ निश्चित तौर पर कांग्रेस मिलेगा. लेकिन कांग्रेस की यह खुशी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी क्योंकि अब इस चुनावी समर में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ भी कूद चुकी है. इससे भाजपा के लिए राह थोड़ी आसान हुई है, जबकि कांग्रेस के लिए परेशानी बढ़ चुकी है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि कई मौकों पर कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी ‘विभीषण’ साबित हुई है.
दरअसल, इसके पीछे कुछ प्रदेश के हुए चुनावी नतीजे हैं, जो इसका संकेत दे रहे हैं कि कैसे हरियाणा में आम आदमी पार्टी की एंट्री कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गई है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच हरियाणा चुनाव को लेकर गठबंधन की तमाम कोशिशें बेकार गई, तो आप की तरफ से यह निर्णय लिया गया कि पार्टी यहां की 90 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. आम आदमी पार्टी की इस घोषणा के साथ ही प्रदेश में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह समझ में आ गया कि अब उनकी पार्टी का हरियाणा विधानसभा चुनाव में नैया पार लगना भी मुश्किल है.
इस सोच के पीछे की वजह भी साफ है क्योंकि दिल्ली से लेकर गोवा, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और राजस्थान के चुनाव नतीजों से कांग्रेस को यह पता लग चुका है कि जहां भी कांग्रेस पहली या दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर चुनाव मैदान में होगी, वहां आप की एंट्री कांग्रेस का पूरा खेल बिगाड़ देगी. दरअसल, कांग्रेस समझ गई है कि आम आदमी पार्टी का वोट बैंक वही है, जो कांग्रेस का वोट बैंक है. ऐसे में दोनों के बीच मतों का बंटवारा तीसरे को बड़ा फायदा देने वाला है.
यही कुछ गोवा, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्य के हालिया विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. लोकसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस और आप मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी तो भाजपा को इसका नुकसान कई राज्यों में उठाना पड़ा. लेकिन विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन चल नहीं पाया और आप-कांग्रेस ने हरियाणा में अलग-अलग चुनाव लड़ने की ठान ली.
उत्तराखंड और पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान यही तस्वीर साफ देखने को मिली थी. कांग्रेस पंजाब में जहां सत्ता में थी, वहीं भाजपा उत्तराखंड में सरकार चला रही थी. ऐसे में दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतरी. पंजाब में कांग्रेस सरकार में थी, ऐसे में आप ने वहां कांग्रेस को ज्यादा नुकसान किया और वहां वह कांग्रेस को हटाकर सत्ता में काबिज हो गई. हालांकि, वहां भाजपा का जनाधार नाम मात्र का रहा है. ऐसे में वहां भाजपा के साथ दोनों ही पार्टियों का मुकाबला सीधे तौर पर नहीं था.
दूसरी तरफ भाजपा उत्तराखंड में लंबे समय से शासन में थी और लोगों को लग रहा था कि सत्ता विरोधी लहर की वजह से इस बार कांग्रेस को जनता चुन सकती है, लेकिन हुआ इसके उलट. कांग्रेस को तो यहां झटका लगा ही, आम आदमी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए और अंततः भाजपा ने इस राज्य में अपना दबदबा कायम रखा.
अब गोवा और गुजरात के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि इन राज्यों में भी भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और कांग्रेस को लग रहा था कि दोनों राज्यों में वह सरकार के गठन में कामयाब होगी लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं पाया. आम आदमी पार्टी की एंट्री ने गोवा और गुजरात दोनों ही जगह कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया. गुजरात में तो भाजपा ने इतने बड़े बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की थी, जिसके बारे में उसने सोचा ही नहीं था. वहीं, गोवा में भी भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही और इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस के वोट बैंक में आम आदमी पार्टी का सेंध लगाना ही था.
अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों पर गौर करते हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में आप ने अपनी ताकत तो झोंकी, लेकिन वह सारी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही थी. ऐसे में कांग्रेस के खिलाफ जिन सीटों पर आप ने उम्मीदवार उतारे थे, वहां कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा और भाजपा को बढ़त मिली. इसका नतीजा ये रहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा की वापसी हुई और राजस्थान में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकलकर भाजपा की झोली में जा गिरी.
इस सब में जो सबसे चौंकाने वाले नतीजे थे, वह छत्तीसगढ़ से आए थे, जहां सारे सर्वे के आंकड़े उस समय इस बात की गवाही दे रहे थे कि कांग्रेस पार्टी की राज्य की सत्ता में एक बार फिर से वापसी हो सकती है. हालांकि, चुनाव के नतीजे ने सबको चौंका दिया और कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक विश्लेषकों ने यह मान लिया कि यहां भाजपा को मिली प्रचंड जीत के पीछे आम आदमी पार्टी ही थी, जिसने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई थी.
वैसे कांग्रेस इस बात को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2013 से ही मानने लगी थी कि आम आदमी पार्टी की वजह से दिल्ली की सत्ता उनके हाथ से चली गई. उस चुनाव में आप ने 28 सीटें दिल्ली में जीती थी. इसके बाद कांग्रेस के साथ ही गठबंधन में यहां सरकार का गठन हुआ और फिर अरविंद केजरीवाल ने 2014 में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद दिल्ली में जो चुनाव हुए, उसमें आम आदमी पार्टी को इतना बड़ा बहुमत मिला, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. कांग्रेस भी यह मान गई थी उसका वोट बैंक पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के खाते में शिफ्ट कर गया है.
ऐसे में आम आदमी पार्टी ने उसी पर चोट मारी और अब हरियाणा में जिस तरह से आप के नेताओं और अरविंद केजरीवाल की सक्रियता बढ़ी है, उसे देखते हुए कांग्रेस को समझ में आ गया है कि आप का यह कदम कहीं भाजपा को फायदा ना दे जाए क्योंकि हरियाणा भी आप, कांग्रेस के ही वोट बैंक को साधने की कोशिश में लगी हुई है.