दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) न्यायिक प्रक्रिया में मानव बुद्धि या मानवीय तत्व (ह्यूमन इंटेलिजेंस) का स्थान नहीं ले सकता है. कोर्ट ऑफ लॉ में चैटजीपीटी (ChatGPT) कानूनी या तथ्यात्मक मुद्दों पर निर्णय का आधार नहीं हो सकता. न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने एक केस में एक पक्ष द्वारा ट्रेडमार्क उल्लंघन के अपने दावे को मजबूत करने के लिए चैटजीपीटी के रिजल्ट पर भरोसा करने के प्रयास को खारिज कर दिया है. 10 प्वाइंट में जानें AI को लेकर हाईकोर्ट की पूरी टिप्पणी…
हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है कि एआई-जनरेटेड डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता अभी भी अस्पष्ट क्षेत्र में है और इस तरह के उपकरण का उपयोग प्रारंभिक समझ या रिसर्च के लिए किया जा सकता है.
न्यायमूर्ति ने कहा कि उक्त टूल (चैटजीपीटी) कोर्ट ऑफ लॉ में कानूनी या तथ्यात्मक मुद्दों के निर्णय का आधार नहीं हो सकता है.
कोर्ट ने कहजा कि चैटजीपीटी जैसे बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) आधारित चैटबॉट्स की प्रतिक्रिया, जिस पर वकील द्वारा भरोसा करने की मांग की जाती है और वादी के लिए उपयोगकर्ता द्वारा पूछे गए प्रश्न की प्रकृति और संरचना, प्रशिक्षण डेटा आदि सहित कई कारकों पर निर्भर करता है.
हाईकोर्ट ने एक हालिया आदेश में कहा कि इसके अलावा एआई चैटबॉट्स द्वारा उत्पन्न गलत प्रतिक्रियाएं, काल्पनिक केस कानून, कल्पनाशील डेटा आदि की भी संभावनाएं हैं.
कोर्ट ने यह टिप्पणी एक लक्जरी ब्रांड द्वारा कथित तौर पर उसके ट्रेडमार्क का उल्लंघन कर जूतों के निर्माण और बिक्री में शामिल एक साझेदारी फर्म के खिलाफ एक केस की सुनवाई के दौरान की.
वादी के वकील ने दलील दी कि जूते का नाम भारत में उसका रजिस्ट्रर ट्रेडमार्क था और इसकी ‘प्रतिष्ठा’ के संबंध में चैटजीपीटी द्वारा अदालत के समक्ष प्रतिक्रियाएं रखी गईं. हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि एआई जनरेट डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता अभी भी स्पष्ट नहीं है.
न्यायमूर्ति ने कहा कि कोर्ट के मन में कोई संदेह नहीं है कि तकनीक विकास के वर्तमान चरण में और एआई न्यायिक प्रक्रिया में मानव बुद्धि या मानवीय तत्व को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती है.
कोर्ट ने कहा कि सर्वोत्तम स्थिति में, उपकरण का उपयोग प्रारंभिक समझ या प्रारंभिक रिसर्च के लिए किया जा सकता है और इससे अधिक कुछ नहीं.
अंत में, अदालत ने माना कि तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर, प्रतिवादी के उत्पाद वादी के विशिष्ट जूतों और जूतों की नक्ल हैं. प्रतिवादी इस बात पर सहमत हुआ कि वह वादी के जूतों के किसी भी डिजाइन की नकल नहीं करेगा.
अदालत ने निर्देश दिया कि अगर वह इस अंडरटेकिंग का उल्लंघन करता है तो प्रतिवादीवादी को हर्जाने के रूप में 25 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा. अदालत ने प्रतिवादी को वादी को लागत के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है.