सूरज की स्टडी करने के लिए इसरो द्वारा भेजा गया भारत का आदित्य एल-1 मुश्किल में फंस सकता है. नासा ने तीव्र CME (कोरोनल मास इंजेक्शन) बादल के माध्यम से उड़ते हुए ‘पार्कर सोलर प्रोब’ का सौर तूफान से टकराने का बीते साल का भयानक फुटेज साझा किया है. अमेरिका की स्पेस एजेंसी ने पार्कर सोलर प्रोब को 2018 में सूर्य के बाहरी कोरोना की स्टडी के लिए लॉन्च किया था. अमेरिका का ‘पार्कर सोलर प्रोब’ इस सौर तूफान से बचने में जैसे-तैसे सफल रहा. क्या ऐसे ही इसरो का आदित्य-एल 1 मिशन भी खतरे में पड़ सकता है?
नासा का कहना है कि मौजूदा वक्त में सौर गतिविधि काफी ज्यादा बढ़ गई हैं. सौर तूफान हाई फ्रीक्वेंसी के साथ पृथ्वी के बाएं, दाएं और केंद्र से टकरा रहे हैं. केवल पृथ्वी ही ऐसे प्रभावों से नहीं जूझ रही है. अन्य ग्रहों पर भी इसका असर हो रहा है. पार्कर सोलर प्रोब को नासा ने मुख्य रूप से दो कारणों से लॉन्च किया था. पहला- यह समझने के लिए कि क्या सीएमई हमारे तारे के चारों ओर कक्षा में ग्रहों की धूल के साथ बातचीत कर सकता है और इसे बाहर ले जा सकता है. दूसरा- अंतरिक्ष मौसम की बेहतर भविष्यवाणी करने के लिए.
यह पहली बार था जब नासा के अंतरिक्ष यान को इस तरह की कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ा और वह इस घटना से सुरक्षित बाहर निकलने में कामयाब रहा. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान रास्तें में उसने कुछ महत्वपूर्ण डेटा भी एकत्र किया. इस तरह के सौर तूफानों ने पहले भी उपग्रहों और अंतरिक्ष यान पर प्रभाव डाले हैं. ऐसे में इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के सौर मिशन आदित्य एल-1 पर भी इसका भविष्य में बुरा प्रभाव पड़े.
क्या आदित्य एल-1 पर पड़ेगा असर?
कुछ आशंकाएं हैं कि CME आदित्य एल-1 से भी टकरा सकता है. इसरो अंतरिक्ष यान को ऐसी घटना से बचने में दो चीजें मदद कर सकती हैं. पहली- पार्कर सोलर प्रोब सूर्य की सतह से 6.9 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर उसके बेहद करीब जाने के लिए बनाया गया है. वहीं, आदित्य-एल1 को बहुत दूर रखा गया है. यह पृथ्वी से मात्र 15 लाख किलोमीटर दूर है. दूसरा- भारतीय अंतरिक्ष यान को अत्यधिक विकिरण, सीएमई बादलों और अन्य किसी भी अंतरिक्ष-आधारित खतरों से बचाने के लिए विशेष धातु और सामग्री के साथ मजबूत किया गया है.