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बस्तर की 12 सीटों में से आठ पर हारी कांग्रेस, किन मुद्दों ने पलट दिया पासा

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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बहुमत के साथ बीजेपी (BJP) की सरकार बनने के बाद अब कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अन्य विधानसभा सीटों के साथ-साथ बस्तर के 8 सीटों में भी मिली हार की वजह तलाश रही है. 8 में से 7 आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में कांग्रेस को बड़े मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा है. खासकर पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज (Deepak Baij) को चित्रकोट विधानसभा से करारी हार मिली है. इन सीटों में मिली हार की वजह आदिवासियों की कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से नाराजगी भी बताई जा रही है. लंबे समय से स्थानीय भर्ती में आदिवासी युवाओं को प्राथमिकता देने की मांग को लेकर सर्व आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार के खिलाफ लगातार धरना प्रदर्शन करता आ रहा था.

जानकारों की मानें तो आदिवासी समाज कई मांगों को लेकर आदिवासी बीच सड़कों में आंदोलन करते दिखाई दिये और धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर भी मूल आदिवासियों और धर्मांतरित आदिवसियो  की नाराजगी देखने को मिली. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि आदिवासियों की नाराजगी की वजह से कांग्रेस को बस्तर के 12 में से 8 सीटों पर हार मिली. वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता मोहन मरकाम, संतराम नेताम, चंदन कश्यप ,छविंद्र कर्मा, शंकर धुरवा जैसे बड़े आदिवासी चेहरो को भी अपने विधानसभा क्षेत्र में आदिवासियों की नाराजगी के चलते हार का सामना करना पड़ा है.

दरअसल आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में विधानसभा चुनाव 2023 में 12 विधानसभा सीटों में से 8 विधानसभा सीट बीजेपी की झोली में आई है. अन्य 4 सीटों में कांग्रेस ने जीत दर्ज किया है, लेकिन इन चार में से दो सीटों में भी जीत का कुछ खास अंतर नहीं है. जिन आदिवासियों को कांग्रेस अपना वोट बैंक मानती थी, उन्हीं आदिवासी सीटों में कांग्रेस को करारी हार मिली है.

बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक जानकार श्रीनिवास रथ का कहना है कि कांग्रेस के पिछली 5 साल के सरकार में कई लोक कल्याणकारी योजनाएं तो कांग्रेस ने लाया लेकिन यह योजनाएं धरातल पर नहीं दिखीं. खासकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में कांग्रेस के प्रति आदिवासियों की काफी नाराजगी देखने को मिल रही थी. चाहे आदिवासियों की स्थानीय मांग को लेकर आंदोलन की बात हो या फिर इन क्षेत्रों में विकास की बात हो. इसको लेकर आदिवासी लंबे समय से स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस सरकार से भी नाराज चल रहे थे. उदाहरण के तौर पर स्थानीय भर्ती में आदिवासी युवाओं को आरक्षण नहीं मिलना इसका सबसे बड़ा खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है. कांग्रेस के विधायकों के कार्यालय का घेराव और कई मांगों को लेकर बस्तर से राजधानी रायपुर तक आदिवासियों का पैदल मार्च करना हार की वजह बताई जा रही है.