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काला नमक चावल, रटौल आम समेत जीआई टैग वाले अन्‍य उत्‍पाद दूसरे क्षेत्र में कैसे उगा सकते हैं

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चाहे पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के 11 जिलों में पैदा होने वाल काला नमक चावल हो, बागपत का रटौल आम हो या फिर झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा हो. ये कुछ खास इलाकों में ही पाए जाते हैं. इसी वजह से उनका जीआई टैग भी कराया जाता है, इसके बावजूद दूसरे इलाकों में पैदावार हो रही है, क्‍या होता है जीआई टैग का नियम, दूसरे इलाकों में कैसे उगाया जा सकता है?
ऐसे उत्‍पाद जो किसी खास क्षेत्र से संबंधित है, वहां का भौगोलिक संकेत (जीआई) होता है.

भौगोलिक संकेत जीआई टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग उन विशेष उत्पादों पर किया जाता है. जो उत्पाद को दूसरों द्वारा नकल किये जाने से भी बचाता है. एक पंजीकृत जीआई टैग 10 वर्षों के लिये वैध होता है. जीआई टैग वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा किया जाता है.

काला नमक चावल पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के 11 जिलों में ही पाया जाता है, जिसमें बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, बलरामपुर, गोंडा ,गोरखपुर, श्रावस्‍ती, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया,बहराइच शामिल हैं. जो यही की जलवाऊ और मिट्टी में ही पैदा होता है. इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है. यह चावल खुशबू के लिए विश्‍व भर में प्रसिद्ध है.

इसी तरह कड़कनाथ मुर्गा प्रजाति में सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जो मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में पाया जाता है. इस मुर्गे की एक और खासियत है. इस मुर्गे का शरीर,खून, चोंच, मांस, और अंडा सभी काले रंग के होते हैं. सामान्य मुर्गे की अपेक्षा इसका स्वाद और गुण के मामले में कई गुना ज्यादा है. वहीं, रटौल आम भी खास पहचान रखे हुए है. बागपत जिले में रटौल गांव हैं, यहां की मिट्टी पर पाए जाने वाला आम अपनी खास सुगंध और स्वाद के कारण काफी लोकप्रिय है. सवाल उठता है कि जीआई टैग होने के बाद ये उत्‍पाद देश के सभी हिस्‍सों में कैसे मिलते हैं.

इंडियन एग्रीकल्‍चर रिसर्च इंस्‍टीट्यूट (आईएआरआई-पूसा) के जेनेटिक विभाग के प्रभारी डा. गोपाल कृष्‍णन बताते हैं कि जब किसी चीज का जीआई टैग कराया जाता है, वो उत्‍पाद उसी नाम से संबंधित क्षेत्र में ही पैदा किया जा सकता है. दूसरे जगह उसी गुण या स्‍वाद का उत्‍पाद भले ही पैदा किया जाए लेकिन उसका रजिस्‍ट्रेशन दूसरे नाम से ही होगा. पूसा ने कई बीज बनाए हैं, उनका स्‍वाद और गुण एक जैसी होने के बाद भी दूसरे नामों से रजिस्‍ट्रेशन किया गया है. यह बात अलग है कि बोलचाल में भले ही वही नाम बोला जाए लेकिन रजिस्‍ट्रेशन उसी नाम से नहीं हो सकता है. हालांकि उन्‍होंने यह भी बताया कि दूसरी जगह उगाए गए उत्‍पाद में जलवायु और मिट्टी का फर्क पड़ता है. इस वजह से गुणवत्‍ता में थोड़ा फर्क पड़ सकता है.