बच्चे मन के सच्चे होते हैं. बच्चे अपने वातावरण को देखकर और उसका अनुकरण करके सीखते हैं. लेकिन आज के दौर में कई सारी ऐसी फिल्में बनती हैं जिसे देखकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है. फिल्में बच्चों के चरित्र को आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं और इसलिए जो सामग्री वे देखते हैं वह उनके आसपास की दुनिया को समझने के तरीके को प्रभावित कर सकती है. डॉ भीमराव आंबेडकर अस्पताल रायपुर के मनोरोग विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर सुरभि दुबे ने बताया कि अगर बच्चे हॉलीवुड, बॉलीवुड या हॉरर फिल्म देख रहे हैं तो यह उनके मानसिक स्थिति पर प्रभाव डाल सकती है. बच्चों के दिमाग में जल्दी छाप पड़ता है.
सुरभि दुबे का कहना है कि कई फिल्में ऐसी होती है जिसमें घृन्तय कार्य होते हैं. फिल्मों के माध्यम से खराब चीजें बच्चों को देखने मिलती है तो बच्चों के साथ माता-पिता को सुपरवाइज़ यानी निगरानी रखते हुए फिल्में देखनी चाहिए. बच्चों को बताना चाहिए कि यह सच की चीजें नहीं है, यह ड्रामा है, एक्टिंग हो रही है कोई भी तथ्य सही नहीं है. क्योंकि अधिकतर देखा जाता है कि बच्चे जब डरावनी फिल्में देखता है फिर अकेले रहने से डर लगता है या अंधेरे में जाने से डर लगता है. उन्हें ऐसा लगता है कि फिल्में के जैसे उनके साथ कुछ न हो जाए. भूत आ जाएगा, मुझे कुछ हो जाएगा ऐसी स्थिति बन जाती है.
बच्चों की निगरानी बहुत जरूरी
डॉ भीमराव आंबेडकर अस्पताल रायपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर सुरभि दुबे ने आगे बताया कि ऐसी फिल्में देखने से बच्चे एंजायटी यानी चिंता का शिकार हो जाते हैं. उन्हें बुरे-बुरे सपने आने लगते हैं. अगर बच्चे ऐसी कोई फ़िल्म देख रहे हैं तो बड़ो का साथ होना बेहद जरूरी है. अगर आपको लगे की यह फ़िल्म बच्चों के लिए ज्यादा भावनात्मक होती जा रही है तब उसे रोक देना चाहिए. आजकल बच्चों के पास इंटरनेट के कई माध्यम हो गए हैं. बच्चे मोबाइल या लैपटॉप में अकेले बहुत चीजें देखते हैं. ऐसी स्थिति में उनकी निगरानी बहुत जरूरी है क्योंकि बच्चों का दिमाग बहुत कोमल होता है. उनमें यह लंबे समय के लिए छाप बन जाती है. इस तरह की मूवी देखने से उन्हें सही गलत का फैसला करने में दिक्कत होती है. जिसकी वजह से बच्चों में बहुत सारी मानसिक तनाव और बीमारियां हो सकती हैं.