Home देश ‘शुक्र है पानी का चालान नहीं काटा…’, कोर्ट ने भले लगाई फटकार,...

‘शुक्र है पानी का चालान नहीं काटा…’, कोर्ट ने भले लगाई फटकार, पर यहां तो भगवान को भी मिल चुका है नोटिस

0

दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे 3 छात्रों की मौत के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा कि ‘शुक्र है आपने कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में घुसने के लिए बरसाती पानी का चालान नहीं काटा.’ हाईकोर्ट ने पानी से भरी सड़क पर थार एसयूवी चलाने वाले शख्स को गिरफ्तार करने पर पुलिस की आलोचना की. थार के चालक मनुज कथूरिया को जमानत दे दी गई. हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी को मामले में ‘अति-उत्साह में फंसाया गया’ था. मगर भारत में कई ऐसे मामले हैं, जिनमें भगवान को भी नोटिस दिया जा चुका है. हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ के एक सिविल कोर्ट में एक मंदिर से जुड़े भूमि विवाद में भगवान शिव को बुलाया गया था.

भगवान हनुमान को पेश होने का आदेश
इस तरह बिहार की एक कोर्ट ने एक मंदिर के उचित प्रबंधन से संबंधित एक मामले में भगवान हनुमान को पेश होने का आदेश दिया. मगर सबसे बड़ा मामला अयोध्या में भगवान रामलला को रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद केस में एक पक्षकार बनाए जाने का रहा है. अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद में विवादित भूमि पर स्वामित्व और अधिकारों का फैसला करना शामिल था, जहां 1992 में ध्वस्त होने से पहले बाबरी मस्जिद खड़ी थी. हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की ओर से दायर मुकदमों में भगवान रामलला विराजमान को मामले में पक्षकार बनाया गया था.

राम जन्म भूमि विवाद
मुकदमों में रामलला की ओर से भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन ने पैरवी की थी. फैसले में रामलला को एक नाबालिग के रूप में मान्यता दी गई, जो किसी मित्र या अभिभावक के जरिये मुकदमा चलाने के हकदार हैं. रामलला को पक्षकार बनाने से विवादित जमीन के मालिक के रूप में भगवान राम के दावे पर फैसला लेने में मदद मिली. सुप्रीम कोर्ट ने उत्कल ठाकुर मामले की कानूनी मिसाल पर भरोसा किया. जिसमें अदालतों ने हिंदू मूर्तियों की न्यायिक स्थिति को मान्यता दी थी. 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने विवाद पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें भगवान रामलला के न्यायिक व्यक्तित्व को बरकरार रखा गया.

देवताओं के संपत्ति अधिकारों को कायम रखना
भारत में न्यायालयों ने मंदिरों में स्थापित देवताओं और मूर्तियों को कानूनी व्यक्ति के रूप में मान्यता दी है. जो संपत्ति रखने और मुकदमा दायर करने में सक्षम हैं. प्रमथ नाथ मलिक बनाम प्रद्युम्न कुमार मलिक (1925) और योगेंद्र नाथ नस्कर बनाम आयकर आयुक्त (1969) जैसे ऐतिहासिक मामलों में न्यायपालिका ने मूर्तियों के न्यायिक व्यक्तित्व को बरकरार रखा. उत्कल ठाकुर मामले (2010) में, उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक कानूनी व्यक्ति के रूप में मूर्ति के अधिकारों को दोहराया. यहां, भूमि पर देवता के वैध दावे की रक्षा की जानी थी, जब राज्य सरकार ने जबरन भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की. देवता के अधिकारों को कायम रखने से राज्य की मनमानी कार्रवाई को रोका जा सका. राम जन्मभूमि मामले में भी इसी तरह का तर्क लागू किया गया.