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खगोल वैज्ञानिकों ने ग्रह, नक्षत्र, तारों और विज्ञान से संबंधित रोचक जानकारी दी
बीते,28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की पूर्व संध्या पर जिले की सबसे ऊंची पर्वत चोटी एवं पर्यटन स्थल राजमेरगढ़ में आकाश दर्शन का शानदार कार्यक्रम आयोजित किया गया।
जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में राजधानी रायपुर से पहुंचे खगोल वैज्ञानिकों एवं कार्यकर्ताओं ने प्रतिभागियों को ग्रह, नक्षत्र, तारों और विज्ञान से संबंधित ज्ञान वर्धक रोचक जानकारी दी। कार्यक्रम में उपस्थित विज्ञान कार्यकर्ता पी सी रथ एवं अजय भोई के द्वारा आकाश दर्शन के लिए 10 इंच के न्यूटोनियन रिफ्लेक्टर टेलीस्कोप के माध्यम से प्रारंभ में शुक्र ग्रह का अवलोकन कराया गया । उसके बाद कैंपिंग कर रहे युवा प्रतिभागियों ने बृहस्पति एवं उसके तीन उपग्रहों का भी स्पष्ट अवलोकन किया। आसमान में रात्रि में दिखाई देने वाले सबसे तेज रौशनी वाले तारे साइरस को भी देखा और पहचाना, इसी के साथ यह भ्रांति भी दूर की गई कि हमें आसमान में खुली आंखों से दिखने वाले तारों में ध्रुव तारे की चमक सबसे तेज होती है। मंगल ग्रह को उसकी अलग से लालिमा युक्त पीली चमक से पहचानने का गुर भी सिखाया गया।
अंतरिक्ष के ग्रहों, उपग्रहों, तारों और आकाश गंगाओं की फोटोग्राफी के लिए उपयोग किए जाने वाले उन्नत उपकरणों के साथ विशेष स्रोत व्यक्ति के रूप में श्री देवल सिंह बघेल इस शिविर में उपस्थित थे। उन्होंने एक्स, गामा किरणों तथा पराबैगनी किरणों के बारे में बताया। तारों के चमकने या टिमटिमाने तथा ग्रहों के नही टिमटिमाने की सामान्य समझ के साथ इसके अपवाद भी बताए गए। खगोलीय पिंडों के अध्ययन तथा एस्ट्रो फिजिक्स के रिसर्च का फायदा किस तरह चिकित्सा विज्ञान और डिजिटल युग में सूचना संपर्क संप्रेषण में हो रहा है इसे मोबाइल के विभिन्न उपयोग के साथ जोड़कर पी सी रथ तथा अजय भोई द्वारा सरल शब्दों में समझाया गया।
कार्यक्रम में युवाओं के प्रश्नों का देर रात्रि तक समाधान करते हुए उन्होंने बताया कि हमारे सौर परिवार के 5 सदस्यों बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि को आमतौर पर हमारे आसमान में हम खुली आंखों से देख सकते हैं। विभिन्न राशियों की आकृतियों के लिए बिना उन्नत उपकरणों के नक्षत्रों के अवलोकन से कोणीय जुड़ाव से कैसे प्राचीन काल से आसमान में मनुष्य की कल्पना से राशियों का निर्धारण किया जाता था उसके बारे में तारों को जोड़ कर सिंह, कन्या, धनु जैसे विभिन्न राशियों की आकृतियों यानि तारामंडलों की जानकारी दी गई। मघा, रोहिणी नक्षत्रों को दिखाया गया।
वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया कि आज के आधुनिक युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट के माध्यम से कैसे बदलाव आ रहे हैं, तकनीक का प्रयोग करके आंकड़ों और गणनाओं में अचूकता लाई जा रही है लेकिन इन सबका मूल हमारा कोर साइंस का आधार है जो 500 से 600 वर्ष का ज्ञान है। आज जो कोर साइंस की उपलब्धियां हैं उनका लाभ मानवता को अगले 100 वर्षों में मिलता रहेगा। कार्यक्रम में संयोजक संजय पयासी पूरी ऊर्जा के साथ प्रतिभागियों को प्रकृति के तादात्म में रौशनी से दूर निस्तब्धता के वातावरण में निर्विघ्न आकाश दर्शन हो सके इसके लिए प्रयत्नशील थे।