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17 साल पहले तो आपने कहा था… कांग्रेस ने डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र पर चुनाव आयोग को घेरा, याद दिलाया पुराना बयान

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कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र संख्या पर चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण को “ढोंग” करार दिया. साथ ही इस मुद्दे पर चुनाव आयोग से आगे सफाई मांगी गई. डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र संख्या पर कांग्रेस ने लीपापोती का आरोप लगाते हुए कहा कि चुनाव आयोग पूरे मामले पर बचने का प्रयास कर रहा है. चुनाव आयोग ने एक दिन पहले कहा था कि वह अगले तीन महीनों में “दशकों से चले आ रहे” मामले को सुलझाएगा. कांग्रेस के नेताओं और विशेषज्ञों के सशक्त कार्य समूह (ईगल) ने एक बयान में कहा, “कांग्रेस पार्टी ईसीआई द्वारा दिए गए इस कमजोर और ढुलमुल स्पष्टीकरण को खारिज करती है और भारत में मतदाता सूचियों की पवित्रता पर सफाई देने की अपनी मांग दोहराती है.”

ईगल एक आठ सदस्यीय समिति है, जिसे चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन की निगरानी के लिए पिछले महीने कांग्रेस द्वारा गठित किया गया था.समूह ने कहा कि भारत के चुनाव आयोग ने एक ही मतदाता पहचान पत्र को कई मतदाताओं को आवंटित किए जाने के मुद्दे पर दोहरा जवाब दिया है. अपने जवाब में चुनाव आयोग ने अपनी प्रक्रियाओं के पीछे छिपकर एक कमजोर स्पष्टीकरण दिया है. आश्चर्य की बात नहीं है कि चुनाव आयोग को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि उसकी मतदाता सूचियों में गलतियां हैं. वो भरोसेमंद नहीं हैं.

‘चुनाव आयोग ने ID को बताया था यूनीक’
कांग्रेस ने कहा कि 18 सितंबर, 2008 को जारी एक पत्र में चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को बताया कि “मतदाता पहचान पत्र यूनीक हैं. हालांकि, चुनाव आयोग आज कहता है कि डुप्लिकेट मतदाता पहचान पत्रों का मुद्दा ‘दशकों पुराना मुद्दा’ है. भारत के नागरिकों को चुनाव आयोग के किस बयान पर विश्वास करना चाहिए? आज एक औसत भारतीय मतदाता को चुनाव आयोग पर भरोसा क्यों करना चाहिए?”

‘क्‍या चुनाव आयोग ने गलत जानकारी दी?’
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि ऐसा कैसे है कि 17 साल बाद, चुनाव आयोग कई मतदाता पहचान पत्रों की इस प्रक्रिया को साफ करने के लिए एक निकाय के गठन की बात करता है? पूछा गया, “क्या चुनाव आयोग भारत के मतदाताओं को यह गलत जानकारी दे रहा था कि मतदाता पहचान-पत्र यूनीक हैं? यदि हाँ, तो चुनाव आयोग अपने नागरिकों को क्या अन्य प्रक्रियाएं बता रहा है?” इन सवालों पर चुनाव आयोग की शुरुआती प्रतिक्रिया यह कहकर अपना बचाव करना था कि “यह केवल राज्यों में ही हो सकता है”. लेकिन ऐसे उदाहरण हैं जिनके स्पष्ट प्रमाण हैं कि एक ही राज्य में एक ही विधानसभा क्षेत्र में एक ही मतदाता पहचान-पत्र संख्या वाले कई मतदाता हैं

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