

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज यशवंत वर्मा के घर कैश कांड की गूंज ससद तक पहुंच गई है. वहीं, काननू व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है, मगर एफआईआर से इंकार कर दिया है. वहीं, कैश कांड के 15 दिन गुजरने के बाद भी अभी तक उनके घर मिले कैश पर किसी की दावेदारी नहीं आई है. बता दें कि जज पहले ही कह चुके हैं कि उन कैश का उनका या उनके परिवार से कोई संबंध नहीं है. उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया. मगर, वहां की बार काउंसिल ने उनके अपॉइंटमेंट का विरोध किया है.
दरअसल, जज वर्मा के घर जले नोटों के बारे में किसी ने दावेदारी पेश नहीं की है. जांच एजेंसियों को यह साबित करना बड़ा मुश्किल हो रहा है कि नोट किसका था. ऐसा ही कुछ बहुचर्चित चंडीगढ़ के जस्टिस निर्मल यादव नोट कांड में हुआ था. सीबीआई आज तक साबित ही नहीं कर पाई कि मामले में कथित रिश्वत के 15 लाख रुपए किसके हैं? इस केस में उनको आज ही क्लीन चिट मिला है. जस्टिस वर्मा के घर मिले इन रकम को सरकारी खजाने में जमा कर दी जाएगी.
जज पैसे से इंकार कर चुके हैं
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर 14 मार्च की रात लगी थी. आग में बड़े पैमाने पर नोट जल जाने का दावा किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा वीडियो भी जारी किया. एक उच्च स्तरीय कमेटी इस मामले की जांच कर रही है. आखिर ये नोट किसके थे अभी तक पता नहीं चल पाया है. इस बारे मे किसी ने कोई दावा पेश नहीं किया है. जस्टिस यशवंत वर्मा पहले ही इनकार कर चुके हैं कि नोटों से उनका कोई लेना देना था.
पहले भी हो चुका है
बहुचर्चित चंडीगढ़ जस्टिस यादव के नोट कांड में भी ऐसा ही हुआ. इस मामले में रिश्वत की कथित रकम 15 लाख रुपए थी. मामले के मुताबिक 13 अगस्त 2008 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर एक व्यक्ति 15 लाख रुपए से भरा एक पैकेट लाया था. आरोप था कि रकम हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल ने अपने मुंशी के जरिए किसी और जस्टिस के लिए भिजवाई गई थी. गलती से यह रकम जस्टिस निर्मलजीत कौर के पास चली गई. उन्होंने तत्काल पुलिस को फोन कर दिया. साथ ही इस बारे में हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस को भी सूचना दे दी.
सीबीआई पहले भी उलझ चुकी है
मामला जांच के लिए सीबीआई के पास चला गया. इस मामले में अब अंतिम फैसला आ चुका है, लेकिन अभी तक सीबीआई यह साबित करने में पूरी तरह से नाकाम रही कि यह 15 लख रुपए आखिर थे किसके. इस मामले में सीबीआई ने जो गवाह बनाए वह एक के बाद एक मुकरते रहे. सीबीआई का केस लड़ रहे वकील ने भी स्वास्थ्य कारणों से मुकदमा लड़ना छोड़ दिया. कथित तौर पर यह पैसा भेजने वाले एडिशनल एडवोकेट जरनल संजीव बंसल की भी मौत हो गई. ऐसे में यह रहस्य आज भी कायम है कि यह 15 लाख रुपए आखिर थे किसके? क्योंकि उसका कोई दावेदार नहीं है.