

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह साफ तौर पर कह चुके हैं कि वक्फ (संशोधन) बिल मौजूदा बजट सत्र में ही पेश किया जाएगा. हालांकि सरकार और बीजेपी के अंदर ही एक धड़ा इसे फिलहाल टालने की संभावनाएं तलाश रहा है.
यह विधेयक 1995 के वक्फ अधिनियम में बड़े बदलाव लाता है, जिससे सरकार को वक्फ संपत्तियों के नियमन और उनसे जुड़े विवादों के निपटारे में दखल देने का अधिकार मिलेगा. बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने 27 जनवरी को इस विधेयक के 14 संशोधनों को मंजूरी दी थी, जबकि विपक्ष द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया था. पिछले महीने केंद्रीय कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी.
गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को टाइम्स नाउ समिट में बोलते हुए एक बार फिर दोहराया कि यह विधेयक मौजूदा सत्र में ही दोबारा पेश किया जाएगा. हालांकि, बजट सत्र 4 अप्रैल को समाप्त हो रहा है और सोमवार को ईद की छुट्टी होने के कारण विधेयक को पारित करने के लिए मात्र चार दिन शेष रह गए हैं.
वक्फ बिल को लेकर कैसा डर?
इस बीच इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि सरकार के कुछ वरिष्ठ नेता मानते हैं कि सीमांकन (डीलिमिटेशन) और तीन भाषा नीति को लेकर पहले ही उत्तर और दक्षिण भारत के बीच राजनीतिक मतभेद उभर रहे हैं, ऐसे में वक्फ बिल इन विभाजन रेखाओं को और गहरा कर सकता है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘ऐसा माना जा रहा है कि सरकार इस बिल को अभी कुछ समय के लिए रोक सकती है और बिहार चुनाव के बाद इसे आगे बढ़ाया जा सकता है.’
हालांकि, जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार, जो बीजेपी के सहयोगी दल से हैं, ने कहा कि इस बिल का बिहार चुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘सरकार का कहना है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के हित में है. हमें इसे देखना होगा. मुझे नहीं लगता कि इसे अभी पारित करने या बाद में लाने से NDA को बिहार चुनाव में कोई फर्क पड़ेगा.’
इसके बावजूद कुछ नेताओं की राय है कि सरकार विधेयक को मौजूदा सत्र में पेश कर सकती है, लेकिन मतदान और पारित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती है.
विपक्ष ने वक्फ बिल को बताया ‘राजनीतिक हथकंडा’
उधर विपक्षी दलों का कहना है कि अगर सरकार बिल को टालती भी है, तो यह केवल चुनावी फायदा उठाने की रणनीति होगी और इससे विपक्ष की तरफ से रखी गई महत्वपूर्ण आपत्तियों को दूर करने में कोई मदद नहीं मिलेगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने कहा, ‘बीजेपी संभवतः इस सत्र में वक्फ बिल को पेश नहीं करेगी, बल्कि इसे पश्चिम बंगाल और असम चुनाव के ठीक पहले लाएगी ताकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ उठाया जा सके.’
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) सांसद हारिस बीरन ने कहा कि अगर सरकार इसे टालती भी है तो इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘सरकार ने विपक्ष द्वारा सुझाए गए किसी भी संशोधन को नहीं माना है. अगर सरकार ईमानदारी से चर्चा करने और हितधारकों के सुझावों पर विचार करने को तैयार होती, तो इस विधेयक को टालने का कोई मतलब बनता.’
ओवैसी ने बताया असंवैधानिक
वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) सांसद और संसदीय समिति के सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 26 और 29 का उल्लंघन बताते हुए इसे पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘हमारा विरोध किसी चुनाव को देखकर नहीं है, बल्कि इस विधेयक के असंवैधानिक होने के कारण है. 1995 में जब वक्फ अधिनियम पारित हुआ था और 2013 में इसमें संशोधन किया गया था, तब बीजेपी भी इसका समर्थन कर रही थी. वक्फ बोर्ड किसी अन्य धार्मिक न्यास की तरह ही है, जैसे हिंदू एंडोमेंट बोर्ड, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी या कोई ईसाई धर्मार्थ संगठन. इन सभी निकायों के सदस्य केवल उनकी संबंधित धार्मिक समुदाय से आते हैं, लेकिन सरकार वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना चाहती है. यह मुस्लिम समुदाय के हित में नहीं है.’
ऐसे में सरकार के अंदर चल रही चर्चाओं और विपक्ष की कड़ी आपत्तियों के बीच अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार वक्फ संशोधन विधेयक को इस सत्र में ही पेश करती है या इसे बिहार चुनाव के बाद लाने का फैसला करती है. वहीं, विपक्ष इस विधेयक को बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा बता रहा है और इसे हर हाल में रोकने के लिए तैयार नजर आ रहा है.