सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय (Subrata Roy) की मृत्यु के साथ ही शायद यह राज हमेशा के लिए राज रह जाएगा कि आखिर वे 25,000 करोड़ रुपये आए कहां से थे. सहारा ग्रुप से लिए गए 25 हजार करोड़ रुपये अब भी शेयर मार्केट रेगुलेटर सेबी के पास रखे हुए हैं, जिन पर किसी ने भी दावा नहीं किया है. रहस्य बरकरार है कि इतना पैसा कहां से आया? निवेशकों को अपना पैसा वापस पाने के लिए पोर्टल खुले भी लगभग 10 साल हो गए हैं, मगर अभी तक केवल 138 करोड़ रुपये ही क्लेम किए गए हैं. 25,000 करोड़ में से केवल 138 करोड़!
14 नवम्बर 2023 को सहारा चीफ सुब्रत रॉय ने अंतिम सांस ली. सुब्रत रॉय की मौत के बाद से ही खबरें हैं कि सेबी के पास रखे बे-दावा (Unclaimed) 25,000 करोड़ रुपये सरकार के कंसोलिडेटेड फंड में जमा किया जा सकता है. मगर अहम सवाल वहीं का वहीं है कि हजारों करोड़ रुपये आए कहां से थे? किसके थे? कोई क्लेम करने क्यों नहीं आया? क्या ये पैसा आसमान से टपका था? हम इसे आसान भाषा में समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
1978 में शुरू की गई सहारा कंपनी पंख फैलाकर भारत में छाने की तैयारी कर रही थी कि सब चौपट हो गया. 2010 से पहले सबकुछ ‘अच्छा’ चल रहा था. कंपनी लगातार बढ़ रही थी. सहारा ग्रुप, ग्रुप न होकर खुद को एक परिवार कहता था. परिवार की कहानी भी बड़ी रोचक है, आगे बताएंगे. 2010 में सहारा ग्रुप की एक कंपनी ‘सहारा प्राइम सिटी लिमिटेड (Sahara Prime City Limited)’ ने बाजार नियामक SEBI के पास आईपीओ लाने के लिए DRHP जमा किया. हर कंपनी बाजार से पैसा उठाने से पहले ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) जमा करती है, जिसमें कंपनी से जुड़ी पूरी वित्तीय जानकारी होती है.
बिना IPO के लिए जुटा लिया था मोटा पैसा
कंपनी के पास कैश तो काफी था, मगर उसे अपनी ‘बड़ी योजनाओं’ को सिरे चढ़ाने के लिए और पैसे की जरूरत थी. कंपनी बढ़ते भारत के साथ खुद बढ़ने के लिए बड़े पुल, एयरपोर्ट्स, और रेलवे सिस्टम से जुड़े इंफ्राप्रोजेक्ट्स में हाथ डालना चाहती थी. इसी कारण सहारा अपना आईपीओ लाना चाहती थी.