पिछले साल 23 जून को विपक्षी दलों ने ज़ोर-शोर से बैठक कर पीएम मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ महागठबंधन बनाने की कवायद शुरू की थी, सात महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद भी विपक्ष वहीं खड़ा है जहां से शुरुआत हुई थी. यानी नौ दिन चले अढ़ाई कोस. वहीं अगर बीजेपी की बात की जाये, तो इस दौरान वो लगातार मज़बूत दिखने के बावजूद अपना कुनबा बढ़ाने में जुटी है और उसमें सफल भी हो रही है.
सबसे पहले बात बिहार की ही, बिहार के CM नीतीश कुमार ने ही विपक्ष की ओर से महागठबंधन बनाने पर ज़ोर दिया था और तमाम विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात कर बैठक के लिए राज़ी किया था. आज ख़ुद नीतीश कुमार ही बीजेपी के साथ है और बिहार में एनडीए के कुनबे को मज़बूती मिली है. जेडीयू के अनेक नेता कहते हैं कि पटना की बैठक के बाद कांग्रेस की ओर से कोई पहल नहीं की गई.
पटना के बाद चलते हैं, विपक्षी गठबंधन को दूसरी बड़ी नेता ममता बनर्जी की ओर, उनका भी नाता विपक्षी गठबंधन से टूट चुका है. वो बीजेपी के ख़िलाफ लड़ेंगी तो ज़रूर लेकिन एकला चलो रे की नीति के तहत. ममता की पार्टी के नेताओं का भी कहना है कि वो लेफ़्ट से दूरी बनाते हुए कांग्रेस को दो सीटें देने को तैयार थे, लेकिन कांग्रेस के अड़ियल रवैये के कारण इस राज्य में भी महागठबंधन नहीं बन पाया.
बंगाल से निकलकर चलते हैं उत्तर प्रदेश. यहां समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के मिलकर चुनाव लड़ने की बात थी. रालोद पहले ही बीजेपी के साथ जाते हुए दिख रहा है. वहीं समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कांग्रेस को अपनी ओर से 11 सीटें देने की घोषणा कर दी, लेकिन कांग्रेस की तरफ़ से अब तक इस पर सहमति वाला आधिकारिक बयान नहीं आया. यानी यहां भी समझौते में रार पड़ी हुई है और एक घटक रालोद बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मज़बूती देने की ओर निकलने वाला है.
अब बात करते हैं पंजाब और दिल्ली में शासन पर रही आम आदमी पार्टी की. AAP ने पहले से ही साफ़ कर दिया था कि वो पंजाब में गठबंधन नहीं करेगी, लेकिन उसके अलावा पूरी तरह से तैयार है. दरअसल AAP पंजाब के अलावा चंडीगढ़ और गुजरात की भरूच सीट पर भी चुनाव लड़ना चाहती है. लेकिन अब तक कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है. अब AAP के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस का इंतज़ार करते करते हम थक गए हैं. यानी अब इन दो पार्टियों के बीच दिल्ली में भी गठबंधन होगा या नहीं, इसे लेकर क़यास शुरू हो गए हैं.
इन राज्यों को छोड़कर बचता है महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्य, जहां किसी नये दल से गठबंधन होना नहीं. फिर भी बात अटकी हुई है. ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस वाक़ई गठबंधन करना भी चाहती है, या सामने निश्चित हार देखकर उसने हथियार डाल दिये हैं. ये सवाल इसलिए कि इस बार 400 पार के लक्ष्य के साथ बीजेपी नये नये साथियों को जोड़ रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस के बड़े नेता न्याय यात्रा में घूम रहे हैं. वहीं क़रीब दो महीने पहले कांग्रेस ने साथी दलों के साथ सीट शेयरिंग को फ़ाइनल करने के लिए पाँच नेताओं की कमेटी बनाई थी, उसे अब तक एक भी राज्य में सफलता नहीं मिली है.