

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपराएं पूरे देश में अपनी अनूठी पहचान रखती है. यहां हर त्योहार को विशेष आस्था और धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है. इसी कड़ी में नवरात्र पर्व, जिसे “नवरात्रि” या “जवारा पर्व” भी कहा जाता है, पूरे राज्य में भक्तिभाव से मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में इस पर्व का विशेष स्थान है, जहां देवी भगवती की आराधना और सामूहिक अनुष्ठान गांव-गांव में संपन्न होते हैं.
गांवों में विशेष धार्मिक आयोजन
ग्रामीण क्षेत्रों में नवरात्रि के दौरान मां भगवती की विशेष पूजा पूरे गांव के सहयोग से की जाती है. छत्तीसगढ़ के गांवों में स्थित देवी मंदिरों में शीतला माता, चंडी माता, सतबहिनिया माता और दंतेश्वरी माता जैसे देवी स्वरूपों की आराधना होती है. इन मंदिरों में श्रद्धालु घट स्थापना से लेकर जवारा विसर्जन तक विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं.
गांवों में पूजा अनुष्ठान की संपूर्ण व्यवस्था बैगा या पंडा द्वारा की जाती है. ये लोग नवरात्रि के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, घट स्थापना से लेकर ज्योत जलाने तक का कार्य पूरी निष्ठा से संपन्न कराते हैं. ग्रामीणों की मान्यता है कि यह ज्योत पूरे गांव की सुख-समृद्धि और रक्षा का प्रतीक होती है, इसलिए इसकी विशेष रूप से देखभाल की जाती है.
निभाई जाती है ये परंपरा
नवरात्रि के अंतिम दिन जवारा विसर्जन एक अनूठी परंपरा के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गांव की बेटियां झेंझरी यानी टोकरी में 9, 11 या 21 संख्या में बोए गए जवारे सिर पर धारण कर नदी या तालाब में विसर्जन के लिए निकलती हैं. पूरे गांव के लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में भक्ति और उल्लास का अद्भुत वातावरण बन जाता है.