

दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से कथित तौर पर कैश मिलने और आग लगने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी बैठाई है, जो जांच कर रही है. लेकिन इस मामले ने कट्टर विरोधी बीजेपी और कांग्रेस को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है दोनों एक ही भाषा में बात कर रहे हैं. सोशल मीडिया में दोनों के एक ही सवाल हैं. पूछ रहे हैं कि आखिर पैसा किसका है? अब तक एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हुई? दोनों सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों पूछ रहे हैं कि अगर आम लोगों के घर में इतनी बेहिसाब नगदी मिली होती तो क्या एफआईआर नहीं होती? क्या इनकम टैक्स का छापा नहीं पड़ता? क्या कानून – IPC और भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) जजों को यह छूट देता है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो? क्या अचानक लगी आग महज संयोग थी या सबूत नष्ट करने के लिए लगाई गई थी? इसने न्यायिक पारदर्शिता के सवाल को और भी सामने लाकर खड़ा कर दिया है. पूछा जा रहा है कि क्या सत्ता के किसी भी पद को कानून और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों से ऊपर होना चाहिए.
पुलिस जांच पर सीमित या शून्य जानकारी
फोरेंसिक रिपोर्ट, नकदी के अवशेष, कथित रूप से जलाई गई और बरामद की गई अनुमानित राशि के बारे में हम वास्तव में क्या जानते हैं? जवाब है? बहुत कुछ नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बात की पुष्टि करने के लिए कोई एफआईआर या सामान्य पुलिस डायरी भी नहीं थी कि आग शॉर्ट सर्किट के कारण लगी थी, या लगाई गई थी. भले ही जस्टिस वर्मा ने अपने बचाव में नकदी के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया हो, लेकिन अभी तक यह पता लगाने के लिए कोई पुलिस जांच नहीं हुई है कि यह नकदी किसकी थी? इस बीच, सोशल मीडिया पर ढेर सारी अपुष्ट जानकारी, तस्वीरें और क्लिप्स की बाढ़ आ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है. रिपोर्ट आने तक न्यायाधीश को दिल्ली हाईकोर्ट के दायित्वों से मुक्त कर दिया गया है. उन्हें वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया है. वहां बार एसोसिएशन विरोध कर रहा है.